अहम के भंवर में डूब गए बीएसए
अशिष्ट और रूखे व्यवहार से परेशान हो उठे थे शिक्षक। 18 फरवरी को दैनिक जागरण ने उठाया था मामला।...
मुजफ्फरनगर : बीएसए मुजफ्फरनगर को शासन ने सस्पेंड कर दिया है। उनके सस्पेंशन का तत्कालिक कारण तो पुलवामा हमले पर उनकी अनर्गल टिप्पणी रहा, लेकिन इस सबके पीछे उनके अंतर्मन की नकारात्मक भावना को भी अहम माना जा रहा है। कारण कुछ भी रहा हो, आखिरकार बीएसए मुजफ्फरनगर अपने अहम के भंवर में डूब गए।
बसपा सरकार में आगरा का बीएसए रहते हुए दिनेश यादव ने जिस तरीके और अंदाज में नौकरी की, योगी सरकार में वही अंदाज उनकी बड़ी भूल साबित हुआ। पुलवामा हमले पर की गई पोस्ट के तीन दिन के भीतर जो बात छनकर सामने आई, उससे जाहिर हुआ कि बीएसए ऊपर से सख्ती का दिखावा भर करते थे। जबकि उनका मकसद कुछ और ही था। सस्पेंशन के बाद बेसिक शिक्षा विभाग से जुड़े कर्मचारी दबी जुबान में कह रहे हैं कि उनकी अशिष्टता और अभद्र व्यवहार से शिक्षक परेशान थे। वह सरकार और बेसिक शिक्षा के शासन स्तर पर बैठे वरिष्ठ अधिकारियों के बारे में भी टिप्पणी करने से नहीं चूकते थे। मृतक आश्रित की नौकरी देने के मामले में भी वह चर्चाओं में रहे। अंतरजनपदीय स्थानांतरण में जनपद में आए 121 शिक्षकों को जिले में पो¨स्टग दी गई। इन दोनों ही मामलों में बीएसए बदनामी से नहीं बच पाए। डायट में काउंसि¨लग समिति ने जिले के एकल विहीन विद्यालयों में अध्यापकों को नियुक्ति दी थी। यह शिक्षक दुर्गम रास्तों से होकर विद्यालयों तक पहुंचते थे, इनमें महिला शिक्षकों की संख्या अधिक थी। शिक्षकों के सामने समस्या आई तो फिर तोल-मोल कर नई पो¨स्टग दे दी गई। यह बात भी किसी से छिपी नहीं रही कि नई पो¨स्टग देने में खूब खेल हुआ। बीएसए के व्यवहार को लेकर ऐसा माहौल बन गया था कि कोई भी सीधे अपनी बात नहीं कहना चाहता था। नेतृत्व पर सवाल खड़ा करने पर फंसे
बीएसए दिनेश यादव ने पीईएस एसोसिएशन के वाट्सएप ग्रुप पर पुलवामा हमले को लेकर जो पोस्ट की थी, उसमें उनकी टिप्पणी ने देश के नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर दिया था। बीएसए द्वारा की गई टिप्पणी पर 'दैनिक जागरण' ने 18 फरवरी के अंक में विस्तृत समाचार प्रकाशित किया था। जिसके बाद विभिन्न संगठनों ने विरोध में धरना-प्रदर्शन कर बीएसए कार्यालय में तोड़फोड़ की थी। जिस पर डीएम ने जांच बैठा दी थी। जांच रिपोर्ट पर शासन ने भी माना कि बीएसए दिनेश यादव को शब्दों और उसके भाव पर नियंत्रण रखा जाना आवश्यक था। शासन ने उनकी टिप्पणी को परिषदीय दायित्वों का उल्लंघन एवं उप्र. कर्मचारी आचरण नियमावली-1956 का स्पष्टतया उल्लंघन माना।