और बेसिक स्कूलों को इन शिक्षकों ने बना दिया आदर्श
सुलतानपुर : यूं तो सरकारी स्कूलों का नाम होता है तो इनकी खस्ता हालत की तस्वीर ही दिमाग में कौंध जाती है, पर कुछ शिक्षक हैं जो अपने दम पर नया करने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ नाम ऐसे हैं, जिन्होंने सरकारी स्कूलों को चमन बना दिया। अत्याधुनिक खेल उपकरण, प्रयोगशालाओं को अपने पैसे से सजाया संवारा है। इतना ही नहीं कंप्यूटर आदि से भी सुसज्जित कर दिया है। जिसे विभागीय उच्चाधिकारी भी सराह रहे हैं।
अर्सला मसूद-बेसिक जूनियर हाईस्कूल धरावां
केमिस्ट्री से एमएससी अर्सला ने साढ़े तीन साल पहले सन् 2015 में बेसिक शिक्षा विभाग में नौकरी पाई तो शहर से करीब 15 किमी के फायले पर स्थित ठेठ मुस्लिम बहुल गांव धरावां के जूनियर हाईस्कूल में उन्हें पोस्टिग मिली। यहां के बच्चे प्राय: मदरसे में पढ़ने जाया करते थे। आधुनिक शिक्षा से उन्हें जोड़ने के लिए उन्होंने बालक और बालिकाएओं को प्रेरित किया। दो साल में ही बाल विज्ञान कांग्रेस , जिला एवं राज्य स्तरीय विज्ञान प्रदर्शनी में यहां के बच्चे शिरकत करने लगे। महकमे ने अर्सला को आदर्श शिक्षक के रूप में चुना।
मुनेंद्र मिश्र-जूनियर हाईस्कूल नरायनपुर
भदैंया ब्लाक का यह स्कूल अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था। मुनेंद्र यहां सहायक अध्यापक होकर आए चार साल पहले। उन्होंने प्रधानाध्यापक व सहकर्मियों के साथ मुहिम छेड़ी वातावरण सृजन की। परिसर को निजी स्कूलों की तर्ज पर विकसित किया। अपना पैसा लगाकर टेनिस कोर्ट, कंप्यूटर कक्ष, स्मार्ट क्लास समेत आधुनिक फर्नीचर लाए गए। यूनीफार्म भी बच्चों की ऐसी कि निजी स्कूल भी मात खा जाएं। पढ़ाई भी हिदी और अंग्रेजी की पूरी-पूरी। देखते ही देखते शोहरत फैली गई और शिक्षाधिकारियों ने भी इसे आदर्श विद्यालय के रूप में तवज्जो दी।
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.ये भी कम नहीं
दूबेपुर के सेमरघाट बेसिक स्कूल में तैनात इंद्रजीत सिंह, उतरदहा विद्यालय में कार्यरत प्रियंका सिंह व अखंडनगर के रविगुप्ता ने अपने विद्यालयों का नक्शा ही बदल डाला।
हमारे ये शिक्षक एक तरह से ब्रांड एंबेस्डर हैं। अन्य शिक्षकों ने भी इन्हें रोल मॉडल माना है। हमारी कोशिश है वातावरण सृजन की। जिसमें इन शिक्षकों के सहयोग से काफी बेहतर किया जा रहा है।
केके सिंह, बीएसए