यहां तो वर्षों से नहीं घूमा विकास का पहिया
मैनपुरी, जागरण संवाददाता। 'अरे लला, अब चुनाव है, तासे तुमऊं चले आए। 25 सालन तै बुलाए रहे तब तो कोऊ नाए आओ। अब तुमऊं का करियौ। बस, कागजन पै लिखा-पढ़ी कर लियो। फिर, एक नओ झूठ बोल के चले जइयौ। कछु नाय बदलन वारो हमारे गाम में। जिनै वोट दए, बे तौ आज तक झांकनऊं नाय आए। अधिकारिन के पास जाऔ तो दरखास्त रखि लेत हैं, लेकिन काम करान कबहुं नाय आये। हमाई तो कटि गई, लेकिन चिता जिन बच्चन की है। आखिर कौ लौ कीचड़ और पानी के बीच सै पढ़न जइयैं।'
यह अकेले मनोहर चाचा का ही दर्द नहीं, जिला मुख्यालय से करीब सात किमी दूर गांव लालपुर सगौनी में ज्यादातर ग्रामीण सरकारी उदासीनता से इसी तरह दुखी हैं। असल में इस पूरे गांव को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया गया। जागरण टीम ने हाल जानने के लिए गांव का रुख किया तो कीचड़ और जलभराव से जूझती गलियों ने बार-बार रास्ता रोका। गांव के बीचों-बीच पहुंचते ही चौपाल पर बैठे कुछ बुजुर्गों ने टोका, पूछा 'लला, का नखलऊ तै आए हो। हियईं पूछि लेओ, गांव में जाकै का करियौ। पूरे गांव को हाल ऐसो ही है। न तो रास्ता है और न साफ पानी।' अब तो रिश्ते भी नहीं आते: बुजुर्ग मोहनलाल और राधेश्याम का कहना है कि न तो जरूरतमंदों के यहां शौचालय बनवाए गए हैं और न ही गांव में नाली-खड़ंजा है। बहू-बेटियों को भी मजबूरी में खुले में शौच जाना पड़ता है। लगभग 10 हजार की आबादी वाले इस गांव में अब तो स्थिति ऐसी हो चुकी है कि कोई अपनी बेटी ब्याहना भी पसंद नहीं करता। जो भी आता है, हाल देख वापस लौट जाता है। कीचड़ के बीच से रोज गुजरते हैं नौनिहाल: गांव से स्कूल तक जाने के लिए एक ही रास्ता है और उस पर भी कीचड़ और जलभराव। स्कूल जाने के लिए रोजाना गांव के बच्चों को इसी कीचड़ के बीच से होकर गुजरना पड़ता है। बच्चों को भी अब आदत सी पड़ चुकी है। पहले कीचड़ से गुजरकर साफ रास्ते पर पहुंचते हैं और बाद में हैंडपंप से हाथ-पैर धोकर स्कूल जाते हैं।