लखनऊ : सूबे के मा0 स्कूलों में ‘खिलवाड़’ बनी खेल शिक्षा, कुल स्कूलों में से 40 प्रतिशत में शिक्षक ही नहीं
लखनऊ : सूबे के माध्यमिक स्कूलों में खेल शिक्षा खिलवाड़ बनकर रह गई है। हाईस्कूल व इंटरमीडिएट में अनिवार्य विषय के तौर पर इसे पढ़ाया जा रहा है, जिसे उत्तीर्ण करना जरूरी है। लेकिन अंक नहीं जुड़ते है। बस यहीं से खेल शिक्षा के साथ मजाक शुरू हो जाता है। 4500 सहायता प्राप्त माध्यमिक स्कूलों में से करीब 40 प्रतिशत में शिक्षक नहीं हैं। खेल के लिए यहां कक्षा नौ से कक्षा 12 तक के विद्यार्थियों से पांच रुपये प्रति माह शुल्क किया जाता है। एक विद्यार्थी से सालभर में जमा हुए 60 रुपये में से 10 रुपये यानी दो महीने का शुल्क जिला रैली के लिए जमा हो जाता है। बाकी 50 रुपये प्रतिवर्ष शुल्क में विद्यार्थी को खेलकूद गतिविधियों के लिए होता है।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेशीय मंत्री एवं प्रवक्ता डॉ. आरपी मिश्र कहते हैं कि उदाहरण के तौर पर राजधानी के ही हनुमान प्रसाद रस्तोगी इंटर कालेज, चुटकी भंडार इंटर कालेज और बाबा ठाकुरदास इंटर कालेज आदि में गेम्स के टीचर नहीं हैं। यही नहीं तमाम स्कूल में खेल के मैदान नहीं है। सूबे में 1400 राजकीय उच्चतर माध्यमिक स्कूलों और 700 राजकीय इंटर कालेजों में से सौ स्कूलों में भी गेम्स टीचर नहीं हैं। खेलकूद का सामान खरीदने के लिए 25-25 हजार रुपये सभी स्कूलों को दिए गए हैं। कक्षा छह से इंटरमीडिएट तक खेल शिक्षा पढ़ाई जा रही है।
हाईस्कूल में क्रीड़ा एवं नैतिक शिक्षा अनिवार्य विषय है। प्रयोगात्मक परीक्षा और लिखित परीक्षा के कुल 100 अंक हैं। ग्रेडिंग सिस्टम लागू है और 60 व उससे ज्यादा अंक मिलने पर ए ग्रेड, 45 अंक से 59 अंक तक बी ग्रेड और 44 अंक व उससे नीचे सी ग्रेड दिया जाता है। वहीं, इंटरमीडिएट में शारीरिक शिक्षा का 100 अंक का पेपर है। इसके अंक नहीं जोड़े जाते, मगर उत्तीर्ण होना जरूरी होता है। राजकीय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष पीएन पांडेय कहते हैं कि बिना शिक्षकों के खेल की पढ़ाई केवल खिलवाड़ बनकर रह गई है।