गुरु का फर्ज निभाने को कुर्बान की छुट्टियां
उर्मिला सिंह कहतीं है कि सोचा कि जिस तरह मुझे अपने बच्चों से प्यार है और जो स्कूल में बच्चे आते हैं आखिर वे भी तो किसी मां के बच्चे हैं। यही सोचकर हमनें कभी मेडिकल लीव और चाइल्ड केयर लीव नहीं ली।...
जहीर हसन, बागपत
हमेशा परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों से शिकायत आम है कि समय से स्कूल नहीं आते और छुट्टियां बहुत करते हैं। वहीं इस नकारात्मक छवि को बदलने में जुटी है उर्मिला सिंह। वह परिषदीय स्कूल में अध्यापिका हैं, लेकिन डेढ़ दशक के करियर में न चाइल्ड केयर लीव ली और न कभी मेडिकल लीव। यदि चाहतीं तो दो साल का अवकाश लेकर घर बैठे पूरा वेतन पातीं। मगर उनके जमीर ने गवाही नहीं दी कि मुफ्त वेतन लेकर गरीब बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करें।
उर्मिला सिंह उत्तम नगर दिल्ली की निवासी हैं। बीएड और विशेष बीटीसी के बाद उर्मिला सिंह की बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति मिल गई। साल 2015 से काशीराम कालोनी खेकड़ा के प्राथमिक स्कूल में कार्यरत है। वह इस स्कूल में नियुक्त हुईं तो 110 बच्चे थे, लेकिन, लेकिन अब 200 बालक पढ़ते हैं। उन्होंने स्कूल में बाल संसद गठित कर बच्चों को अभिव्यक्ति की आजादी देने काम किया। बच्चों को सांप-सीढ़ी खेल के जरिए गणित सिखाने, लूडो खेल के जरिए हिदी और इंग्लिश के शब्दों का ज्ञान कराने में जुटीं हैं।
कायम की मिसाल
उर्मिला सिंह हमेशा स्कूल में समय से ड्यूटी आती हैं। प्रधानाध्यापिका संगीता सिंह बतातीं है कि वह चार साल से उनके साथ है लेकिन याद नहीं कि वे कभी दस
मिनट भी ड्यूटी आने में लेट हुई हों। उनके लिए ड्यूटी का मतलब है सिर्फ बच्चों को पढ़ाना, क्योंकि वह बिना वजह की बातों में एक मिनट भी नहीं खोती। बड़ी बात है कि वे चाहतीं तो 730 दिन की चाइल्ड केयर लीव ले सकतीं थीं लेकिन नहीं ली। बीएसए दफ्तर का रिकार्ड भी गवाही दे रहा है कि उर्मिला सिंह ने कभी मेडिकल लीव नहीं ली है। अब उनका चाइल्ड केयर लीव लेने का समय निकल चुका है।
डीएम से मिला सम्मान
दो सप्ताह पहले डीएम पवन कुमार, सीडीओ पीसी जायसवाल और बीएसए राजीव रंजन कुमार मिश्र समारोह में उर्मिला सिंह को कभी मेडिकल लीव और चाइल्ड केयर लीव नहीं लेने ओर बच्चों को गुणात्मक शिक्षा देने पर सम्मानित कर चुके हैं। बीएसए ने कहा कि उर्मिला सिंह दूसरे शिक्षकों के लिए मिसाल है कि ड्यूटी से बढ़कर कुछ नहीं है।
मैं एक मां हूं..
उर्मिला सिंह कहतीं है कि सोचा कि जिस तरह मुझे अपने बच्चों से प्यार है और जो स्कूल में बच्चे आते हैं आखिर वे भी तो किसी मां के बच्चे हैं। यही सोचकर हमनें कभी मेडिकल लीव और चाइल्ड केयर लीव नहीं ली।