दो तरह के कटऑफ से असमंजस
राब्यू, प्रयागराज : परिषदीय स्कूलों में 69000 सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए शासन की ओर से तय कटऑफ सवालों के घेरे में है। घोषित कटऑफ को हाईकोर्ट की अलग-अलग पीठ में चुनौती दी गई। दोनों न्यायालयों में लंबे समय तक सुनवाई होने के बाद फैसला सुनाया जा चुका है। खास बात यह है कि फैसले में दो तरह के निर्देश है। इससे शासन व परीक्षा संस्था असमंजस में है कि आखिर किस आदेश का पालन करें। इसीलिए शासन इसे बड़ी बेंच में चुनौती देने की ओर बढ़ा है।
बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में 69000 शिक्षक भर्ती का शासनादेश एक दिसंबर 2018 को जारी हुआ। लिखित परीक्षा छह जनवरी को कराई गई और सात जनवरी को शासन ने भर्ती का कटऑफ अंक तय किया। इसमें सामान्य वर्ग के लिए 65 व आरक्षित वर्ग के लिए 60 प्रतिशत अंक पाना अनिवार्य किया गया। इसके बाद से ही अभ्यर्थियों का एक वर्ग खासा नाराज है और इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। खास बात यह है कि एक प्रकरण को दो याचिकाएं हुईं, रिजवान अहमद ने लखनऊ खंडपीठ में और रीना सिंह व अन्य ने मुख्य पीठ इलाहाबाद के समक्ष याचिका दायर की। दोनों पीठों ने स्थगनादेश जारी करके परीक्षा संस्था व शासन से जवाब-तलब किया। दोनों पीठों में लंबी सुनवाई चली। आखिरकार लखनऊ खंडपीठ में न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की बेंच ने आदेश दिया कि 68500 शिक्षक भर्ती के कटऑफ अंक के आधार पर इसमें भी चयन हों।
वहीं, रीना सिंह व अन्य की याचिका में न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने आदेश दिया कि भर्ती के शासनादेश में दिए गए प्रावधान के अनुसार भर्ती की जाए। ज्ञात हो कि भर्ती का शासनादेश एक दिसंबर 2018 को जारी हुआ था और उसमें कटऑफ अंक का कोई जिक्र ही नहीं है। ऐसे में परीक्षा संस्था व शासन के समक्ष यह असमंजस है कि आखिर वह किस आदेश को मानें। बिना कटऑफ के चयन संभव नहीं, साथ ही एक पीठ का आदेश मानने में दूसरे पीठ की अवमानना होगी। इसीलिए शासन इस मामले को बड़ी पीठ में चुनौती देने की तैयारी में है।
68500 शिक्षक भर्ती में था विवाद : कटऑफ अंक को लेकर 68500 शिक्षक भर्ती में विवाद हुआ था और वह विवाद शासन ने ही कराया। शासनादेश में जिस कटऑफ अंक का उल्लेख था, उससे इतर कटऑफ लिखित परीक्षा के पांच दिन पहले जारी किया गया। यह प्रकरण भी कोर्ट पहुंचा था, हालांकि न्यायालय ने शासनादेश के कटऑफ को ही माना और उसी पर चयन हुआ।