नई दिल्ली : एक लाख से ज्यादा शिक्षकों को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने बीएड बीटीसी के दौरान टीईटी पास करने को ही मान्यता, हाई कोर्ट का आदेश रद्द
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 मई 2018 के फैसले में टीईटी रिजल्ट के बाद बीएड या बीटीसी की डिग्री पाने वालों को नौकरी के लिए अयोग्य करार दिया गया था। हाई कोर्ट के फैसले से प्रभावित शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। चयनित शिक्षकों का कहना था कि उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा (यूपी-टीईटी) के लिए 4 अक्टूबर 2011 और 15 मई 2013 को जारी शासनादेश में इस बात का जिक्र नहीं था कि जिनके प्रशिक्षण (बीएड या बीटीसी) का परिणाम टीईटी के बाद आएगा उन्हें टीईटी का प्रमाणपत्र नहीं मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बीएड या बीटीसी में दाखिला लेने वाले अभ्यर्थी भी टीईटी में शामिल हो सकते हैं। अगर वह टीईटी में सफल रहते हैं तो उनके प्रमाणपत्र भी वैध होंगे। लेकिन उन्हें नौकरी तभी मिलेगी, जब वो बीएड या बीटीसी की परीक्षा पास कर लेंगे। भर्ती के समय अभ्यर्थी के पास स्नातक, बीएड या बीटीसी और टीईटी की डिग्री होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि नियुक्ति हर राज्य के नियम के हिसाब से होती है। नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर्स एजूकेशन (एनसीटीई) के 23 अगस्त, 2010 को जारी दिशानिर्देशों में कहा गया था कि टीईटी में बीएड और बीटीसी में दाखिला लेने वाले अभ्यर्थी भी शामिल होने के पात्र हैं।
वरिष्ठ वकील आर वेंकटरमणी, राकेश खन्ना ने पीड़ित सहायक शिक्षकों की तरफ से अदालत में दलील रखी। जबकि उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग की तरफ से वकील राकेश मिश्र अदालत में मौजूद रहे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उत्तर प्रदेश के करीब एक लाख सहायक शिक्षकों की नौकरी बच गई है। इस आदेश का असर वर्तमान में चल रही 68,500 सहायक अध्यापक भर्ती पर भी पड़ने वाला था।