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बागपत : इस पाठशाला में पब्लिक स्कूल से नाम कटाकर आते हैं नौनिहाल

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इस पाठशाला में पब्लिक स्कूल से नाम कटाकर आते हैं नौनिहाल


अक्सर परिषदीय स्कूलों में बच्चों का टोटा रहता है। इसका अपवाद है बागपत का प्राथमिक स्कूल नंबर दो। इसमें 1010 बच्चे पढ़ते हैं जो 20 प्राथमिक स्कूलों के कुल बच्चों से 110 ज्यादा हैं। अच्छी शिक्षणगुणवत्ता के कारण पब्लिक स्कूलों से नाम कटाकर आए 40 बच्चे भी इस स्कूल में पढ़ते मिलेंगे।...

बागपत, जेएनएन। बागपत नगर का प्राथमिक स्कूल नंबर दो देखने में तो अन्य परिषदीय स्कूल जैसा ही है। स्कूल में पढ़ाने का तरीका कुछ हटकर है, तभी तो इस स्कूल में पब्लिक स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे भी आकर्षित हो रहे है। इस शैक्षिक सत्र की बात करें, तो अभी तक 40 बच्चे पब्लिक स्कूल से नाम कटाकर इस स्कूल में एडमिशन ले चुके हैं। हालत ये है कि इस स्कूल में एडमिशन के लिए सिफारिश की जरूरत पड़ती है। स्कूल में 1010 बच्चे पढ़ते हैं, जो 20 प्राथमिक स्कूलों के कुल बच्चों से 110 ज्यादा हैं। यह इकलौता स्कूल है, जिसमें 300 नए बच्चों के नामांकन का कीर्तिमान बना है। पढ़ाने का तरीका है दमदार

-इस स्कूल में अध्यापक कक्षा एक से पांच तक बच्चों को किताबें पढ़ाने के साथ लूडो, कैरम बोर्ड, सांप-सीढ़ी और चक्के पर चक्का खेल खिलाकर शब्द व अंकों का ज्ञान कराते हैं। टीचिग लर्निंग मैटीरियल से फल-फूल, पौधे और हिदी-इंग्लिश के शब्द बनाकर बच्चों को समझाते हैं। कबड्डी खिलाकर भी बच्चों को शिक्षा दी जाती है। बच्चों में झिझक दूर कराने को हर शनिवार बाल संसद लगती है। पढ़ाई में कमजोर बच्चों को चिन्हित कर रखा है, जिनको अलग से पढ़ाया जाता हैं।

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सब कुछ है व्यवस्थित

-प्रत्येक शिक्षक निर्धारित समय से पांच मिनट पहले स्कूल पहुंच जाते हैं। स्कूल में जगह भले ही कम हो, लेकिन फल-फूल और पौधारोपण से हरियाली छायी है। बालक-बालिकाओं के अलग-अलग टॉयलेट हैं। हर टायलेट में हाथ धोने को साबुन और सिर के बाल संवारने को शीशा-कंघा रखा है। मिड डे मील गुणवत्ता बेहतर है। हेडमास्टर ब्रजभूषण कहते हैं कि गत साल स्कूल में 815 बच्चे थे, जिनमें 104 कक्षा पांच पास कर दूसरे स्कूलों में चले गए हैं। पांच कमरों का निर्माण कराने व शिक्षकों की कमी दूर करने को मांग बीएसए से की है। इनकी है दरकार

कक्षा चलाने को कमरे कम

कक्षा एक में 260, कक्षा दो में 250, कक्षा तीन में 150, कक्षा चार में 139 और कक्षा पांच के 122 बच्चे हैं। दस कमरे हैं। यानी एक-एक कमरे में 100 से 130 तक बच्चे बैठने को मजबूर हैं। अंदर जगह नहीं मिलने पर बच्चों को कमरों के दरवाजे के बाहर तक बैठते हैं।

शिक्षकों का टोटा

मानक 30 बच्चों पर एक टीचर है। लिहाजा 33 टीचर के बजाय महज 17 हैं। शिक्षकों की कमी दूर हो जाए तो स्कूल की शान में और चार चांद लग जाएंगे। मिड डे मील को आठ रसोइयां होने चाहिए, लेकिन हैं पांच।

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इन्होंने कहा..

इस स्कूल में शिक्षण गुणवत्ता अच्छी होने से एक हजार से ज्यादा बच्चे हैं। कमरे बनवाए जाएंगे और शिक्षकों की कमी दूर करेंगे। हेडमास्टर का पुरस्कृत करेंगे।

-राजीव रंजन कुमार मिश्र, बीएसए

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