नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों को सुप्रीम कोर्ट से एक बार फिर लगा झटका
उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों को सुप्रीम कोर्ट से एक बार फिर झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों का सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजन रद करने वाले फैसले के खिलाफ दाखिल क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट पुनर्विचार याचिका पहले ही 30 जनवरी 2018 को खारिज कर चुका है। यह मामला उत्तर प्रदेश में 1,72,000 शिक्षा मित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित करने का था।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, एसए बोबडे, एनवी रमना और यूयू ललित की पीठ ने गत छह अगस्त को उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ की ओर से दाखिल क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन फैसला वेबसाइट पर बाद में अपलोड हुआ। कोर्ट ने आदेश में कहा है कि उन्होंने याचिका और उसके साथ दाखिल दस्तावेजों पर गौर किया, जिसमें पाया कि यह मामला क्यूरेटिव याचिका पर विचार करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में तय मानकों में नहीं आता, इसलिए याचिका खारिज की जाती है। पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद शिक्षा मित्रों ने क्यूरेटिव याचिकाएं दाखिल की थीं। संघ के वकील गौरव यादव का कहना है कि कोर्ट का जो भी फैसला है हमें स्वीकार है, लेकिन वे शिक्षामित्रों के हित में राज्य सरकार से गुहार जारी रखेंगे।
समायोजन रद करने के हाई कोर्ट के फैसले को ठहराया था सही : सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई 2017 को प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों में सहायक शिक्षक के तौर पर शिक्षामित्रों के समायोजन को रद करने के हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया था, लेकिन मामले की विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए कहा था कि अगर शिक्षामित्र जरूरी योग्यता हासिल कर लेते हैं तो उन्हें लगातार दो बार के भर्ती विज्ञापनों में मौका दिया जाएगा। उन्हें आयु में छूट मिलेगी, साथ ही उनके अनुभव को भी प्राथमिकता दी जाएगी। कोर्ट ने कहा था कि जब तक उन्हें ये मौका मिलता है तब तक राज्य सरकार चाहे तो उन्हें समायोजन से पहले की शर्तो के आधार पर शिक्षामित्र के रूप में काम करने दे सकती है।
कोर्ट ने कहा था कि शिक्षा मित्रों का कॅरियर बच्चों को मिलने वाली मुफ्त और गुणवत्ता की शिक्षा की शर्त पर नहीं हो सकता। कोर्ट ने हाईकोर्ट से सहमति जताते हुए कहा था कि कानून के मुताबिक नियुक्ति के लिए 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना से न्यूनतम योग्यता जरूरी है। ये सारी नियुक्तियां उपरोक्त तिथि के बाद हुई हैं।
क्या है मामला
उत्तर प्रदेश सरकार ने 26 मई 1999 को एक आदेश जारी किया था, जिसके आधार पर शिक्षा मित्र (पैरा टीचर) नियुक्त हुए। ये भर्तियां सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षक और छात्रों का अनुपात ठीक करने और सभी को समान प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गईं। इनकी भर्तियां शिक्षक से कम योग्यता पर और कम वेतन पर हुईं। नियुक्ति संविदा आधारित थी। एक जुलाई 2001 को सरकार ने एक और आदेश निकाला और योजना को और विस्तृत किया। जून 2013 में 1,72,000 शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित करने का निर्णय लिया गया। सरकार के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने समायोजन रद कर दिया जिसके खिलाफ शिक्षा मित्र और सरकार सुप्रीम कोर्ट आए। कोर्ट में मामला लंबित रहने के दौरान 1,72,000 में से करीब 1,38,000 शिक्षामित्र सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित हो चुके थे जिन्हें आदेश से झटका लगा था।