पाठकों की उपेक्षा से राजकीय पुस्तकालय हो रहा वीरान
जासं, फतेहपुर: डीआइओएस दफ्तर के मुख्य द्वार के बगल में आलीशान इमारत में राजकीय पुस्तकालय संचालित हो रहा है। शासन के द्वारा पठन पाठन की बेहतरीन सुविधाएं दी गई हैं। पाठकों की अरुचि के कारण इस सरकारी पुस्तकालय में सन्नाटा चीरता रहता है। 27,876 किताबों के विशाल संग्रह के कद्रदानों की कमी से इसका पुरसाहाल नहीं है।
वर्ष 1985-86 में शासन की विशेष योजना के तहत जिले में राजकीय पुस्तकालय का निर्माण कराया गया था। इसके लिए आलीशान इमारत तैयार करवाई गई और पुस्तकों का संग्रह भेजा गया। इसके बाद लगातार इसमें पुस्तकों की खेप आती रही है। मौजूदा समय में 27,876 किताबों के विशाल संग्रह है। शुरुआत में पठन पाठन के इच्छुक लोगों का जमावड़ा लगता रहा है। एक दशक से इन पाठकों की संख्या में कमी आई है। पुस्तकालय के नियमों के तहत 500 रुपये के आजीवन शुल्क के साथ कोई भी व्यक्ति इसका सदस्य बन सकता है। सदस्यता खत्म होने पर राशि भी वापस कर दी जाती है। मौजूदा समय में यहां पर 155 सदस्य है और 5-6 लोग आते हैं। कभी कभी तो पाठकों की बोहनी तक नहीं हो पाती है। पुस्तकालय में प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ अन्य तमाम क्षेत्रों की किताबें तथा प्रतिदिन के अखबार पढ़ने की सुविधा है।
आन लाइन सुविधा ठप पड़ी: पुस्तकालय में आन लाइन किताबों को पढ़ने के लिए मशीन की सुविधा दी गई है। इंटरनेट की सुविधा न होने के चलते यह‘मशीन शो-पीस बनकर रह गई है। जिसको लेकर कई बार लिखा पड़ी किए जाने का दावा किया जा रहा है। तीन साल के अंतराल में दूरसंचार विभाग से इंटरनेट का कनेक्शन नहीं होपाया है।
पुस्तकालय अध्यक्ष और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही बचे: इस संस्थान में पुस्तकालय अध्यक्ष के रूप में राजकुमार की तैनाती है जबकि एक अन्य चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं। संविदा पर रखे गए कर्मचारियों की सेवाएं शासन ने दो साल पहले खत्म कर दी हैं। सुरक्षा के लिए चार साल पहले से डीएम के आदेश पर दिन में एक होमगार्ड और रात में दो होमगार्ड की ड्यूटी रहती है। सफाई कर्मी तक की नियुक्त नहीं है।
कमला लाइब्रेरी में जड़ा रहता ताला: शहर में दूसरी लाइब्रेरी का नाम कमला लाइब्रेरी है। सन 1041 लाला बाबू कामता प्रसाद और नानक प्रसाद दो सगे जमींदारों द्वारा ज्वालागंज में कराया गया था। जिसका संचालन नगर पालिका के द्वारा होता है। शुरुआती दिनों में यह गुलजार रही और बाद में बदहाली के रास्ते में बढ़ती गई। यहां पर पाठक तो नहीं पहुंचते हैं लेकिन नगर पालिका का एक कर्मचारी अलबत्ता कागजों में रखवाली के लिए दर्ज है।
राजकीय पुस्तकालय ’ जागरण
27 हजार किताबों के बड़े संग्रह के बाद चीरता सन्नाटा, 155 पंजीकृत पाठकों में कभी कभी नहीं हो पाती बोहनी