इनकी मंजिल स्कूल नहींकूड़े-कचरे में ढूंढते हैं सपने
जासं, खनुआ, महराजगंज: सीमावर्ती क्षेत्रों में रोजी रोटी की जुगत में मासूमों का बचपन कचरे के ढेर में खो रहा है। इन्हें पढ़ाई-लिखाई से कोई सरोकार नहीं है। ठंडी, गर्मी और बरसात में भी ये बच्चे लोहा, प्लास्टिक सहित कबाड़ जुटाकर बिक्री करते हैं, जिससे इनका घर परिवार चलता है। घर की माली हालत खराब होने के कारण सैकड़ों बच्चों ने आज तक स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है। इतना ही नहीं कुछ बच्चों को बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। सरकार का सब पढ़ें-सब बढ़ें व शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसे प्रयास भी गरीबी के आगे असफल हैं। अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर काबिल इंसान बनाने का सपना सभी देखते हैं, मगर आर्थिक तंगी के आगे सारे सपने टूट जाते हैं। इसके चलते पढने लिखने की उम्र में मासूमों को काम में लगा दिया जाता है। तहसील क्षेत्र के पान, ठेला, होटल, शीतल पेय, सर्विस सेंटरों सहित अन्य दुकानों व कचरे के ढेर में ऐसे कई बच्चे दो जून की रोटी के लिए हाड़तोड़ मेहनत करते देखे जा सकते हैं। स्थानीय नागरिक उमाशंकर यादव ने बताया कि सीमावर्ती क्षेत्र के दुकानों, सर्विस सेंटरों, इलाक़े के ठेला पटरी व्यवसायियों के बच्चों सहित अन्य बच्चे जल्दी उठकर तैयार हो जाते हैं और अपने साथियों को बुलाकर घर से निकल पड़ते हैं। इनकी मंजिल स्कूल नहीं होती, बल्कि सीमा से सटे कस्बों में चाय की दुकानों, सर्विस सेंटरों और बाज़ार में जगह-जगह लगे कूडे, कचरे के ढेर होते हैं।
सरकार की योजनाएं बस दिखावा, यहां गरीबी से दब रहे बच्चे, सर्व शिक्षा अभियान की निकल रही हवा, दावे भी खोखले