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बाराबंकी : संकेतों की भाषा से बोल सुन और देख रहे बच्चे

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संकेतों की भाषा से बोल सुन और देख रहे बच्चे


प्रेम अवस्थी ’ बाराबंकी । ‘हम नन्हें-मुन्ने हों चाहे पर नहीं किसी से कम, आकाश तले जो फूल खिलें वह फूल बनेंगे हम। ’ यह पंक्तियां मूक बधिर और दिव्यांग बच्चों के हौसले को बयां करती हैं। मूकबधिर बच्चे मंजरी, करन, हंसराज, प्रियांशु की संकेतों के जरिये फल, सब्जी और पूछी गए सवालों के तत्परता से जवाब की कला और दृष्टिबाधित कृष्णा, ज्योति, तनु, कोमल के कागज और स्लेट पर ब्रेललिपि के जरिये सरपट लिखावट उनकी कमजोरी को मुंह मोड़ने को मजबूर कर देती है। इनके जज्बा और लगन में भारत के स्वर्णिम भविष्य की मजबूत नींव दिखती है। यह सब 13 साल पहले सर्व शिक्षा अभियान के तहत शुरू की गई समेकित शिक्षा योजना के ब्रिज कोर्स के जरिए संभव हो सका है। इसके तहत मौजूदा समय में दो हजार बच्चे प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं।

40 बच्चों से शुरू हुई थी मुहिम : वर्ष 2005 में बनीकोडर ब्लॉक के कोटवा सड़क में 40 बच्चों से ब्रिजकोर्स शिविर शुरू हुआ था। शुरुआती दौर में बच्चों के माता-पिता उन्हें शिविर में छोड़ने को राजी नहीं थे। जिला समन्वयक समेकित शिक्षा सुधा जायसवाल और रिसोर्स टीचर एकता सक्सेना ने शिक्षकों के साथ गांव-गांव उनके अभिभावकों को राजी किया। बच्चों में सुधार होते देख अभिभावकों का विश्वास बढ़ा तो जिला मुख्यालय पर 100 बच्चों तक शिविर संचालित हुआ। पहले शिविर में स्कूल न जाने वाले बच्चों को आयु के मुताबिक कक्षा में दाखिला करने के लिए तैयार किया जाता था। अब ऐसे बच्चे न होने पर स्कूलों में पंजीकृत बच्चों को ही चिन्हित कर ब्रिजकोर्स शिविर में लाया जाता है। तीन से छह माह तक शिविर में रहने के बाद उनकी पढ़ाई की गति बेहतर हो जाती है। इसके लिए तैनात 32 विशेष शिक्षक स्कूलों में जाकर शिक्षकों को ऐसे बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित करते हैं। वर्तमान में जवाहर लाल नेहरू परास्नातक महाविद्यालय परिसर में संचालित ब्रिज कोर्स शिविर में 24 बच्चे दृष्टिबाधित व 36 बच्चे मूक-बधिर हैं। इनकी देखभाल के लिए तीन केयरटेकर रखे गए हैं। शिक्षिका एकता सक्सेना, सोनाली शर्मा, गीता कनौजिया, वार्डेन अवधेश तिवारी, राज नरायन वर्मा इन बच्चों के भविष्य को संवार रहे हैं।

विश्व मूक बधिर दिवस विशेष

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