गोरखपुर : संस्कृत भाषा ही नहीं शिक्षा का माध्यम बने
यह बातें उप्र संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष डॉ. वाचस्पति मिश्र ने कही। वह गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ स्नातकोत्तर महाविद्यालय गोरखनाथ मंदिर में रविवार को आयोजित युगपुरुष ब्रrालीन महंत दिग्विजयनाथ की 125वीं जयंती वर्ष समारोह के अवसर पर संस्कृत भाषा एवं महंत दिग्विजयनाथजी विषय पर व्याख्यान को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा को जानने के पश्चात ही भारत का विश्व गुरू बनने का सपना पूरा हो सकता है। संस्कृत विद्या शिक्षा अलग नहीं होनी चाहिए अपितु विश्वविद्यालयों में संस्कृत का अलग भवन होना चाहिए, जहां संस्कृत शास्त्रों का अध्ययन एवं अध्यापन हो। बतौर विशिष्ट वक्ता दौलत गिरी संस्कृत महाविद्यालय लखनऊ के प्राचार्य डॉ. विनोद मिश्र ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ ने संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना गोरखपुर में की। अध्यक्षता करते हुए महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के वरिष्ठ सदस्य प्रमथनाथ मिश्र ने कहा की विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल करना, अपने धर्म और संस्कृति का योजनाबद्ध तरीके से प्रचार करना भी विद्यापीठ के छात्रों का उत्तरदायित्व है।
विद्यापीठ के प्राचार्य डॉ. अरविंद चतुर्वेदी ने कहा कि महंत दिग्विजयजी की संस्कृति के प्रति अगाध श्रद्धा का ही परिणाम है संस्कृत विद्यापीठ। संचालन बृजेश मणि मिश्र एवं आभार ज्ञापन डॉ. प्रांगेश मिश्र ने किया। संगोष्ठी में डॉ. रंगनाथ त्रिपाठी, दिग्विजयनाथ, शशि कुमार, शिवांशु मिश्र, डॉ. रोहित मिश्र, डॉ. अभिषेक पांडेय, कलाधर पौडयाल, डॉ. उमाशंकर प्रसाद, पुरुषोत्तम चौबे, दीप नारायण आदि मौजूद रहे।