मेरे बाद कोई और देखे ये खूबसूरत दुनिया
जागरण संवाददाता, मैनपुरी: एक नेत्रहीन की व्यथा ने शिक्षक की सोच ही बदल डाली। मजबूरी और विषम हालातों में भी जिंदगी जीने के जज्बे ने शिक्षक को सहृदयता का ऐसा पाठ पढ़ाया कि उन्होंने अपनी आंखें संपूर्ण प्रक्रिया के साथ एक बैंक को दान कर दीं। सिर्फ इतना ही नहीं, यह भी लिखकर दे दिया कि उनके जाने के बाद उनकी आंखों को किसी ऐसे जरूरतमंद को दान किया जाए जो बेहद निर्धन और पूरी तरह से बेसहारा हो। अब वह दूसरों को भी ऐसे कार्य के लिए प्रेरित करने में जुटे हुए हैं।
मूल रूप से कस्बा शिकोहाबाद के रहने वाले भानुप्रताप सिंह शहर के स्टेशन रोड पर कोचिंग का संचालन करते हैं। कोचिंग में बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने के साथ वे इंसानियत का पाठ भी पढ़ाते हैं। वे नेत्रदान कर चुके हैं। उनका कहना है कि मैनपुरी से शिकोहाबाद के रास्ते एक व्यक्ति को बहुत समय पहले भीख मांगते देखा था। वह व्यक्ति रोज गाड़ियों में गुजरने वालों के सामने हाथ फैलाता था।
बातचीत में पता चला कि बीमारी में उस व्यक्ति ने अपनी दोनों आंखें गवां दीं और अब भीख मांगकर ही दिव्यांग पत्नी और बच्चों का पेट भरता है। इस घटना ने उनकी सोच बदली। उनका कहना है कि आइ बैंक एसोसिएशन ऑफ इंडिया, हैदराबाद को उन्होंने अपनी आंखें दान कर दी हैं। अब वह इसके लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित कर रहे हैं, जिसका असर भी दिखाई देने लगा है। अन्य लोग भी अब मन बना रहे हैं।