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जौनपुर : कोयले से लिखना सीखा, मिटा रहीं अशिक्षा की कालिख

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जौनपुर : कोयले से लिखना सीखा, मिटा रहीं अशिक्षा की कालिख

शशि कुमार गुप्त ’ जौनपुर

हौसला और जज्बा हो तो कठिन से कठिन काम भी आसान हो जाता है। ऐसा ही कार्य जौनपुर के हटिया गांव की मुन्नी बेगम ने कर दिखाया है। अनपढ़ मुन्नी बेगम ने अपनी राह में कभी शिक्षा को रोड़ा नहीं बनने दिया। आलम यह रहा कि चूल्हे से निकले कोयले से लिखना सीखकर इन्होंने पढ़ाई शुरू की। जीवटता का आलम यह रहा कि बेटे के स्नातकोत्तर पूरा करने के एक साल बाद इन्होंने भी स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की।

अब तक पांच हजार महिलाओं को भी साक्षर कर चुकीं मुन्नी को उपराष्ट्रपति के हाथों एक्जांपल अवार्ड मिल चुका है। महराजगंज विकास खंड के पहाड़पुर में 1971 में जन्मी मुन्नी की शादी 12 वर्ष की उम्र में रामनाथ हटिया गांव में कर दी गई। शादी के दौरान वह पूरी तरह निरक्षर थीं। पति गुजरात में नौकरी करते थे। पति के पत्र का जवाब न दे पाने के कारण परेशान मुन्नी ने पढ़ने लिखने की ठानी। घर के बाहर चूल्हे से निकले कोयले से मिट्टी पर व बच्चों द्वारा फेंकी गई रफ कॉपी पर लिखने का अभ्यास करके सफलता पाई। प्राइमरी और जूनियर हाईस्कूल में प्रवेश लेकर अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद 1997 में हाईस्कूल और 99 में इंटर, 2004 में बीए, 2017 में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की। पति की बीमारी के बाद 1994 में जब घर चलाना मुश्किल हो गया तो एक प्राइवेट विद्यालय में 500 रुपये प्रतिमाह पर अध्यापन प्रारंभ किया। वर्ष 2000 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अपने वार्ड से जिला पंचायत सदस्य चुनी गईं। इसके साथ सामाजिक कार्य प्रारंभ हो गया।

तरुण चेतना सामाजिक संस्था से जुड़कर उन्होंने साक्षरता एवं महिला सशक्तीकरण अभियान चलाया। जिसके लिए जिलाधिकारी प्रतापगढ़ ने पुरस्कृत किया। 2015 में जिलाधिकारी जौनपुर ने भी महिला साक्षरता एवं सुरक्षा के लिए ‘मैं भी मलाला हूं’ पुरस्कार से सम्मानित किया। 2018 में उपराष्ट्रपति ने एक्जांपल अवार्ड से सम्मानित किया। पति की मौत के बाद एकमात्र बेटे के सहारे अपने भावी जीवन का ताना-बाना बुन रही 50 वर्षीय मुन्नी बेगम आज भी शिक्षा एवं महिला सशक्तीकरण के काम में जुटी हुई हैं। हजारों महिलाओं को साक्षर बनाने के अलावा उन्हें सिलाई कढ़ाई आदि स्वरोजगार का प्रशिक्षण भी देती हैं।

सम्मान पत्रों-पदकों के साथ जौनपुर निवासी मुन्नी बेगम ’ जागरण

अब तक पांच हजार महिलाओं को बना चुकीं साक्षर, मिले अनेक पुरस्कार और सम्मान

’>>जीवटता के बल पर बेटे से एक साल बाद पूरी की पढ़ाई, शिक्षिका बनीं

’>>जिला पंचायत सदस्य बनीं, शुरू किया महिलाओं को साक्षर बनाने का काम

कोयले से लिखना सीखा, मिटा रहीं अशिक्षा की कालिख

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