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मैनपुरी : एसआइटी तेजी दिखाए भरोसा तो सीबीआइ पर ही, माता-पिता को अब भी नहीं जांच एजेंसियों पर भरोसा

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मैनपुरी : एसआइटी तेजी दिखाए भरोसा तो सीबीआइ पर ही, माता-पिता को अब भी नहीं जांच एजेंसियों पर भरोसा

दिलीप शर्मा ’ मैनपुरी

चेहरे पर दर्द की लकीरें, कांपते हाथ और आंखों से बहते आंसू। अपनी बेटी को गंवाने वाली मां की बीते ढाई महीने से यही तस्वीर है। फिर भी, अगले ही पल आंसुओं को पोछते हाथ और अन्याय की दुहाई, इस मां के न्याय के जंग के इरादों को भी जाहिर कर देती है। फरियाद की अनदेखी से पिता भी मायूसी में डूबे हैं, बेटी के जिक्र पर उनकी भी आंखें डबडबा जाती हैं। बुधवार को दैनिक जागरण से अपने घर पर विशेष बातचीत में छात्र के माता-पिता ने अपने इस दर्द को बयां किया। उनसे बातचीत के चुनिंदा अंश..

सवाल: सरकार की ताजा कार्रवाई से आप संतुष्ट हैं? एसआइटी की जांच पर भरोसा है?

जवाब: सरकार यदि शुरू में ही यह कार्रवाई करती तो शायद जांच की दिशा सही होती। परंतु पहले दिन से ही हम पर चुप रहने का दबाव बनाया गया। हमें अब भी भरोसा नहीं। एसआइटी यदि जल्द सही दोषी सामने ले आती है तो अलग बात है। हम अब भी सीबीआइ जांच ही कराना चाहते हैं।

सवाल: पुलिस की खुदकशी की शुरुआती थ्योरी पर आपको भरोसा क्यों नहीं था? आपके अविश्वास के कारण क्या हैं?

जवाब: बेटी की हत्या के बाद हमें किसी ने सूचना नहीं दी, शव अस्पताल पहुंचा दिया गया। शरीर पर चोटों, दुष्कर्म वाली बातें, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में छिपा ली गई। फिर हमसे खुदकशी की बात को मानने को कहा जाता रहा। एफआइआर लिखाने को भी जूझना पड़ा। कदम-कदम पर बातें दबाई-छिपाई गईं? बताइए कैसे भरोसा कर लें।

सवाल: बेटी से आखिरी बार कब मिले थे? क्या वह खुदकशी जैसा फैसला ले सकती थी?

जवाब: घटना से तीन दिन पहले बेटी से मुलाकात हुई थी। वह पूरी तरह सामान्य और खुश थी। मेरी बेटी वैसे भी बहुत हिम्मत वाली और गलत बात न सहने वाली थी। उसने खुदकशी नहीं की। हत्यारों को बचाने के लिए मामला बनाया गया।

सवाल: क्या शव का जलप्रवाह आप पर दबाव बनाकर कराया गया?

जवाब: हम बेटी के शव का दोबारा पोस्टमार्टम कराना चाहते थे। यदि ऐसा होता तो सच सामने आ जाता। इससे बचने के लिए ही पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों ने दबाव बनाकर जलप्रवाह करा दिया, हम वहां मौजूद नहीं थे।

सवाल: आपने अब तक बयान क्यों नहीं दर्ज कराए?

जवाब: पहले हमसे किसी ने संपर्क ही नहीं किया। हम खुद पुलिस के पास जाकर जानकारी मांगते थे तो हमसे एसटीएफ के पास जाने को कह दिया जाता था। एसटीएफ मामला पुलिस के पास होने की बात कहती थी। वो हमारी सुनना ही नहीं चाहते थे, अपनी कहानी को सही साबित करना चाहते थे।

सवाल: क्या आप मामले में अफसरों को भी दोषी मानते हैं? उन पर कार्रवाई चाहते हैं?

जवाब: हमारी मेधावी बेटी से ऐसी दरिंदगी हुई और दोषी अब तक आजाद हैं। न्याय में हो रही इस देरी के लिए कौन जिम्मेदार हैं। मामले को दबाने वाले अफसरों को चन्हित कर सरकार को उनपर कानूनी कार्रवाई भी करनी चाहिए।

’>>माता-पिता को अब भी नहीं जांच एजेंसियों पर भरोसा

’>>बोले- रोज बनाते रहे खुदकशी की थ्योरी पर भरोसे को दबाव

जो आगे आए उनके आभारी राजनीति से मतलब नहीं

पीड़ित माता-पिता राजनीति के सवाल पर कुछ बोलना नहीं चाहते। कुरेदने पर उन्होंने कहा कि हम अपनी बेटी के इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं, हमारा राजनीति से कोई मतलब नहीं। जो प्रयास कर रहे हैं, उनका ईश्वर भला करे।

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