अनुकंपा में देरी को माफ कर नियुक्ति पर करें विचार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने परिवार की आवश्यकता एवं आर्थिक स्थिति पर विचार किए बगैर मृतक आश्रित की अर्जी देरी के आधार पर निरस्त करने के आदेश को रद्द कर दिया है। साथ ही कहा कि एसएसपी आजमगढ़ ने स्वयं याची के बालिग होने पर अर्जी दिए जाने पर विचार का आश्वासन दिया था। ऐसे में राज्य सरकार को देरी को माफ कर नियुक्ति पर विचार करना चाहिए। ऐसा न करना शिव कुमार दुबे के केस में निर्धारित विधि सिद्धांत के विपरीत है।
कोर्ट ने राज्य सरकार को अर्जी दाखिल करने में देरी को माफ कर नियमानुसार दो माह में नियुक्ति पर निर्णय लेने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली ने दीपक यादव की याचिका पर दिया वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम को सुनकर दिया है।
याची के पिता यादवेंद्र यादव पुलिस कांस्टेबल थे। सेवाकाल में उनकी मृत्यु हो गई। उस समय याची नाबालिग था। वर्ष 2009 में मां के माध्यम से यह कहते हुए अनुकंपा कोटे में नौकरी की मांग की कि बालिग होने पर नियुक्ति की जाए। 25 जनवरी 2010 को एसएसपी ने याची की मां को आश्वस्त किया कि वह बालिग होने पर अर्जी दे। इंटर पास करने के बाद याची ने 25 जुलाई 2012 को अनुकंपा कोटे में नौकरी के लिए अर्जी दी। विभाग ने 26 अगस्त 2015 को देरी से अर्जी देने के कारण उसे निरस्त कर दिया गया। कहा गया कि अर्जी पांच साल की अवधि बीत जाने के बाद दी गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का कहना था कि पांच साल बाद देरी से दाखिल अर्जी पर राज्य सरकार को माफी देने का अधिकार है। सरकार परिवार की स्थिति व आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले।एसएसपी ने विचार किए बगैर अर्जी खारिज कर दी, जिसे कोर्ट ने रद्द कर दिया है।