प्रयागराज : हिन्दी के 32 अध्यापकों की नियुक्ति का मामला फिर हाईकोर्ट पहुंचा
हिन्दुस्तान टीम,प्रयागराज इविवि के कुलपति रहे प्रो. आरएल हांगलू के कार्यकाल में हिन्दी विभाग में 32 प्रोफेसरों व एसोसिएट प्रोफेसरों की नियुक्ति को लेकर हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है। अर्जी में नियुक्ति में धांधली के आरोप में पूर्व में दाखिल जनहित याचिका पर वापसी के आधार पर खारिज करने के आदेश को सुधारते हुए फिर से सुनवाई की मांग की गई है। यह याचिका याची के वापस लेने के आधार पर गत छह मार्च को खारिज कर दी गई थी।याची प्रदीप कुमार द्विवेदी ने बुधवार को दाख़िल अर्जी में कहा है कि उन्होंने न तो मौखिक और न ही लिखित रूप से याचिका वापस ली थी। उनका कहना है कि संभवतः लिपिकीय त्रुटि या टाइपिंग की गलती से गलत आदेश पारित हो गया है। इसलिए इसे सुधारते हुए याचिका पर सुनवाई की याचना की गई है।याचिका में हिन्दी विभाग के प्रोफेसरों व एसोसिएट प्रोफेसरों की उक्त पूरी चयन प्रक्रिया को अध्यादेश के विपरीत बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है।प्रदीप द्विवेदी का कहना है कि प्रो. आरएल हांगलू ने अपने कार्यकाल में मनमाने तरीके से विभिन्न विभागों में शिक्षकों की नियुक्तियां की थीं। उनके ही कार्यकाल में हुईं हिन्दी विभाग में 32 प्रोफेसरों व एसोसिएट प्रोफेसरों की नियुक्तियां पूरी तरह अवैधानिक व अध्यादेश के विपरीत हैं।याचिका में कहा गया कि पूरी चयन प्रक्रिया ही गलत है क्योंकि चयन समिति में किसी भी बाहरी व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाना चाहिए था लेकिन हिन्दी विभाग के प्रोफेसरों व एसोसिएट प्रोफेसरों का चयन करने वाली समिति में प्रो. गोपेश्वर सिंह भी शामिल थे। इसके अलावा इसके लिए गठित स्क्रीनिंग कमेटी भी दोषपूर्ण थी। नियमानुसार स्क्रीनिंग कमेटी में विभागाध्यक्ष, डीन एवं दो विशेषज्ञ रह सकते थे। इनमें एक एक्सपर्ट बाहर का हो सकता था लेकिन प्रो. हांगलू ने मनमाने तरीके से स्क्रीनिंग कमेटी में दो की जगह तीन विशेषज्ञ रखे। यही नहीं, नियमानुसार रिजेक्टेड अभ्यर्थी का चयन किसी भी स्थिति में नहीं किया जाना चाहिए था लेकिन इस चयन प्रक्रिया में कुछ रिजेक्टेड अभ्यर्थियों का भी चयन कर लिया गया।यह भी कहा गया कि चयनित शिक्षकों से नियुक्ति के पूर्व यह हलफनामा भी लिया गया था कि नियमों में परिवर्तन होने पर उनका चयन व नियुक्ति शून्य हो जाएगी। क्योंकि जब चयन किया जा रहा था, तब रोस्टर 16 लागू था। बाद में मानव संसाधन मंत्रालय ने अध्यादेश लागू कर दिया लेकिन इन 32 प्रोफेसरों व एसोसिएट प्रोफेसरों की सेवा समाप्त नहीं की गई। इस प्रकार अध्यादेश का उल्लंघन किया गया है।