हिन्दुस्तान टीम,प्रयागराज एचआरडी मंत्रालय की एनआईआरएफ रैंकिंग में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पिछड़ने के यूं तो कई कारण हैं पर सबसे महत्वपूर्ण है शिक्षकों की कमी और जनता की नजर में इसकी खराब छवि। इविवि में शिक्षकों के 500 से अधिक पद रिक्त हैं, जिसका सीधा असर शिक्षण के साथ ही शोध पर पड़ा है, जो रैंकिंग का एक महत्वपूर्ण कारक है। इविवि किन्ही न किन्ही वजहों को लेकर पूरे वर्ष विवादों में बना रहता है, इसकी वजह से भी इसकी शाख पर भी बट्टा लग रहा है।पिछले वर्ष की स्थिति पर गौर करें। पूर्व कुलपति प्रो. आरएल हांगूल को लेकर प्रयागराज से लेकर दिल्ली तक सेवानिवृत शिक्षकों और छात्रों ने प्रदर्शन किए। यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोपों से घिरे पूर्व कुलपति के निर्णयों ने समय-समय पर विवादों को जन्म दिया, जिससे परिसर काफी समय तक अशांत रहा।एनआईआरएफ ने रैंकिंग के लिए जो पांच प्रमुख मानक बनाए हैं, उसमें एक पब्लिक परसेप्शन भी है। इसके तहत संस्थान के प्रति जनधारणा का भी आकलन किया जाता है। एनआईआरएफ ने शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों की सूची से बाहर होने के कारण इविवि का रिपोर्ट कार्ड तो जारी नहीं किया है पर जानकारों का मानना है कि इसका पब्लिक परसेप्शन अन्य संस्थानों की तुलना में काफी खराब रहा।बाकी के चार मानकों में से दो टीचिंग, लर्निंग एण्ड रिसोर्स तथा रिसर्च एण्ड प्रोफेशनल प्रैक्टिस में इविवि शिक्षकों की कमी की वजह से कमजोर पड़ जाता है। ग्रेजुएशन आउटकम में इविवि ने थोड़ा बेहतर किया है। लोक सेवा आयोग की पीसीएस जे, पीसीएस सहित अन्य भर्तियों के साथ ही उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती के सफल छात्रों की सूची में यहां के छात्रों का प्रतिनिधित्व बढ़ा है लेकिन पांच में से जब तीन मानक बेहद कमजोर हों तो बाकी दो मानक से जरिए रैंकिंग में सुधार आखिर कैसे संभव है।
सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस
इविवि की रैंकिंग को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। लोग इसके कारणों के बारे में कई बातें कह रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या अधिक है, जो इसके लिए पूर्व कुलपति प्रो. आरएल हांगलू को जिम्मेदार मानते हैं। इविवि साइंस फैकेल्टी के डीन रहे प्रो. एके श्रीवास्तव कहते हैं कि इसके लिए पूर्व वीसी और उनकी टीम जिम्मेदार है। इविवि को विद्वान, कर्मठ और ईमानदार कुलपति की आवश्यकता है।