प्रयागराज : इंटर में तीन की जगह एक प्रश्नपत्र लागू करने से घाटे में रहे परीक्षार्थी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, प्रयागराज एनसीईआरटी पैटर्न अपनाए जाने के बाद से यूपी बोर्ड की लगातार तीन परीक्षाओं में इंटरमीडिएट के परिणाम में कमी देखी जा रही है। भले ही 2019 की परीक्षा की अपेक्षा अबकी बार परिणाम में चार फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन पूर्व में 2015 में 88.83 फीसदी परिणाम की अपेक्षा यह बहुत कम है।इंटरमीडिएट में दो और तीन प्रश्नपत्रों के स्थान पर एकल प्रश्नपत्र की व्यवस्था लागू करने के बाद परीक्षाफल में गिरावट दर्ज की जा रही है। बोर्ड के अधिकारी भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि बदलाव परीक्षाफल पर भारी पड़ा। यूपी बोर्ड की ओर से जारी आंकड़ों पर यदि नजर डालें तो 2015 में इंटरमीडिएट का परिणाम 88.83 फीसदी, 2016 में 87.99 फीसदी, 2017 में 82.62 फीसदी था। 2018 की परीक्षा से यूपी बोर्ड की ओर से एनसीईआरटी पैटर्न अपनाया जाने लगा था, 2019 की परीक्षा में इसे पूरी तरह लागू कर दिया गया। 2018 में रिजल्ट 72.43 फीसदी तो 2019 में यह गिरकर 70.06 फीसदी पहुंच गया। 2020 में रिजल्ट 74.63 फीसदी पहुंच गया। इस प्रकार बोर्ड की ओर से इंटरमीडिएट में भौतिकी, रसायन, गणित सहित मानविकी के विषयों नागरिक शास्त्र, भूगोल, इतिहास, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र विषय में एनसीईआरटी का पैटर्न अपनाए जाने के बाद परिणाम में गिरावट दर्ज की गई।हाईस्कूल में पहले से ही एकल प्रश्नपत्र की व्यवस्था लागू होने से परीक्षार्थियों ने यहां तो बदलाव को स्वीकार कर लिया और हाईस्कूल का परिणाम पिछले वर्ष 80.07 फीसदी की अपेक्षा इस बार 83.31 फीसदी रहा। सीएवी इंटर कॉलेज के गणित शिक्षक संजय सिंह का कहना है कि हाईस्कूल के परिणाम में बहुत अंतर नहीं आया, लेकिन यह बदलाव इंटरमीडिएट में भारी पड़ा।उनका कहना है कि तीन-तीन प्रश्नपत्र के गणित के कोर्स को एक प्रश्नपत्र में समाहित करना छात्रों पर भारी पड़ रहा है। इसका असर प्रतियोगी परीक्षाओं पर भी पड़ रहा है। उनका कहना है कि अभी तक यूपी बोर्ड के परीक्षार्थी दूसरे बोर्ड के छात्रों पर इंजीनियरिंग, मेडिकल की परीक्षाओं में भारी पड़ते थे परंतु अब उनके साथ परेशानी हो रही है।