लखनऊ : ऑनलाइन पढ़ाई ने परेशानी बढ़ाई, बच्चों के दिमाग पर पड़ रहा असर
पढ़ाई और खर्चों के बोझ तले दब रहे बच्चे व अभिभावक स्कूल खुलने के पक्ष में नहीं हैं अभिभावक
लखनऊ, (कुसुम भारती)। कोरोना काल में लगाए गए लॉक डाउन का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ रहा है। एक ओर ऑनलाइन क्लास का टेंशन, तो दूसरी ओर होमवर्क की चिंता। कुल मिलाकर छोटे बच्चों की पढ़ाई की सारी जिम्मेदारी मम्मियों के सिर पर आ गई है। वहीं, दूसरी ओर जुलाई में स्कूल-कॉलेज खुलने की सूचनाओं को लेकर ज्यादातर अभिभावक परेशान हैं। जाहिर है, कोरोना वायरस के चलते हर माता-पिता को अपने बच्चे की फिक्र होगी। ऐसे में, बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई तो अभिभावक उनकी सुरक्षा, फीस व स्कूल के अन्य खर्चों को लेकर परेशान हैं। जुलाई में कोरोना संक्रमण और अधिक फैलने का खतरा है। ऐसे में, सबसे बड़ा खतरा बच्चों की सुरक्षा को लेकर है। आखिर इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। क्या छोटे बच्चे उतनी सावधानी बरत सकेंगे जितना कि बड़े बरतते हैं।
जीरो सेशन कर दिया जाए 2020 को
राजाजीपुरम निवासी ज्योति निगम कहती हैं, मेरा बेटा अभी नर्सरी में पढ़ रहा है। लॉक डाउन के दौरान तो हमने सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन किया। मगर मुझे नहीं लगता छोटे बच्चे इसका मतलब भी ठीक से समझते हैं। मैं तो अपने बेटे की सुरक्षा को लेकर बहुत सावधानी बरत रही हूं। ऐसे में 2020 को जीरो सेशन मान लिया जाना चाहिए।
स्कूल में कौन सैनिटाइजर लगाएगा
नर्सरी में पढ़ रहे समर्थ कपूर की मां संगीता कपूर कहती हैं, घर पर तो बच्चे सोशल डिस्टेंस का पालन नहीं कर पाते फिर वे स्कूल में कैसे करेंगे। साथ ही स्कूल में हर 20 मिनट में एक-एक बच्चे को कौन हैंडवॉश और सैनिटाइजर कराएगा। टीचर बच्चों को पढ़ाएंगे या फिर यह सब कराएंगे। फिलहाल बच्चे घर में ज्यादा सुरक्षित हैं।
बच्चों की सेहत से समझौता नहीं
पारूल मलिक कहती हैं, लामार्टीनियर बॉयज कॉलेज में मेरा बड़ा बेटा वंशित मलिक क्लास नाइंथ और छोटा बेटा वरदान मलिक क्लास फोर्थ में पढ़ रहे हैं। मेरे विचार से इस साल बच्चों को स्कूल से दूर ही रखा जाए तो ठीक होगा। जब बड़े सोशल डिस्टेंस का पालन करने के बावजूद कोरोना का शिकार हो रहे हैं, तो बच्चे कितना सुरक्षित रह सकेंगे, यह कहना मुश्किल है। रही बात फीस की तो वह भले स्कूल वाले ले सकते हैं, पर बच्चों को इस साल पढ़ाई से मुक्त रखना ही ठीक होगा।
स्कूल एडमिनिस्ट्रेटर के साथ मां भी हूं
एक निजी स्कूल में एडमिनिस्ट्रेटर के पद पर कार्यरत सिमरन भाटिया खुल्लर कहती हैं, मैं खुद स्कूल में नौकरी करती हूं। मगर मैं एक मां होने के नाते भी बच्चों के प्रति सावधानी बरतने की सलाह देती हूं। मेरा बेटा नर्सरी में पढ़ता है। इसलिए फिलहाल तो मैं भी स्कूल खुलने के पक्ष में नहीं हूं क्योंकि बच्चे न तो सोशल डिस्टेंस का ध्यान रख सकेंगे और न ही अपनी सेहत का।
इस बार न खोले जाएं स्कूल
नीलाक्षी स्वरूप मेहता कहती हैं, मेरा बेटा धार्मिक अभी प्ले ग्रुप में है इसलिए उसकी सेहत और सुरक्षा को लेकर मैं तो बहुत चिंतित हूं। अगर स्कूल खुल भी जाएंगे तब भी मैं अपने बेटे को स्कूल नहीं भेजूंगी। इतने छोटे बच्चे इस खतरनाक वायरस से खुद को कैसे बचा पायेंगे। वे अपना ख्याल बिल्कुल भी नहीं रख सकेंगे इसलिए मैं तो कहती हूं कि इस बार स्कूलों को बंद ही रखा जाए तो बेहतर होगा।
विषम परिस्थितियों में धैर्य रखें
नवयुग पीजी कॉलेज में प्रिंसिपल व मनोविज्ञानिक डॉ. सृष्टि श्रीवास्तव कहती हैं, कोविड-19 महामारी ने पूरे विश्व में भय और अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर दी है, खासकर एजूकेशन सेक्टर में। प्रतियोगी परीक्षाओं, उच्च शिक्षा में वार्षिक व सेमेस्टर परीक्षा सहित जुलाई में नए सेशन की पढ़ाई के लिए जारी नई गाइडलाइन को लेकर सभी परेशान हैं। ऐसे में, विषम परिस्थितियों में सभी को धैर्य से काम लेने की जरूरत है।
पेरेंटस कुछ सुझावों पर अमल करके इस स्थिति में सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं:
जब तक कोरोना का कहर पूरी तरह शांत नहीं होता तब तक घर पर वर्चुअल क्लास से ही पढ़ाई कराएं।
बच्चों की रूटीन फिर से सेट करें। यानि बच्चों को समय पर सुलायें और सुबह जल्दी उठाकर तैयार करके पढ़ाई के लिए मोटिवेट करें।
ऑनलाइन क्लास के बाद बच्चों को मोबाइल से दूर रखें, डिजिटल गेम न खेलने दें नहीं तो उनकी आंखों व मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
बच्चों में कोरोना का फोबिया पैदा करने के बजाए उनको सहज तरीके से हाइजीन, सोशल डिस्टेंसिंग आदि की ट्रेनिंग दें।
बच्चों के साथ संतुलित व्यवहार करें। न ज्यादा लाड़-प्यार व छूट दें, और न ही ज्यादा डांटे-फटकारें।
अभिभावकों को यह भी समझना चाहिए कि नए सेशन में फीस देना स्वाभाविक है क्योंकि स्कूल तो अपना कार्य कर रहे हैं।