हिन्दुस्तान टीम, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि दैनिक कर्मचारी से लंबे समय तक ड्राइवर की सेवा लेने के बाद सरकार यह नहीं कह सकती कि नियुक्ति के समय कर्मचारी के पास वैध लाइसेंस नही था इसलिए उसकी नियुक्ति ही अवैध थी।कोर्ट ने कहा कि उंस कर्मचारी की नियुक्ति आदेश में ड्राइवर का जिक्र नहीं है। वह दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया गया था। ऐसे में उसे नियमित करने के एकल पीठ के आदेश में अवैधानिकता नहीं है। इसी के साथ कोर्ट ने वन विभाग के सचिव की ओर से दाखिल राज्य सरकार की विशेष अपील पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर एवं न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने उप्र राज्य की विशेष अपील खारिज करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि दैनिक कर्मचारी से लंबे समय तक ड्राइवर की सेवा ली गई। उससे ड्राइविंग लाइसेंस के बगैर काम लेते रहे तो अब यह नहीं कह सकते कि नियुक्ति के समय उसके पास लाइसेंस नहीं था। इसलिए नियुक्ति अवैध थी। कोर्ट ने कहा कि नियुक्ति के बाद कर्मचारी ने लाइसेंस प्राप्त कर लिया है और लगातार उसकी सेवा ली जा रही है। अब यह नहीं कह सकते कि उसकी नियुक्ति ही अवैध थी। वैसे भी उसकी नियुक्ति दैनिक कर्मचारी के रूप में की गई थी।मामले के तथ्यों के अनुसार राम नारायण 1989 में वन विभाग में दैनिक कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया गया और 2006 तक कार्यरत रहा। उसने नियमितीकरण के लिए याचिका की तो उसे सेवा से हटा दिया गया। कहा गया कि उसकी नियुक्ति ही अवैध थी। एकल पीठ ने यह कहते हुए याचिका मंजूर कर ली कि याची लंबी सेवा के आधार पर नियमित होने का हकदार है। इस आदेश को सरकार ने चुनौती दी थी।
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