प्रयागराज : शिक्षा के साथ नीति को भी बनाना होगा व्यवहारिक
शिक्षाविदों ने कहा, नई शिक्षा नीति तभी सफल होगी, जब निजी से सरकारी स्कूलों की ओर लौटेंगे बच्चे
शिक्षा नीति का मजबूती से क्रियान्वयन कराने पर जोर, नई नीति को सैद्धांतिक रूप से बताया गया बेहतर
प्रयागराज। नई शिक्षा नीति में जीडीपी का छह फीसदी हिस्सा शिक्षा की बेहतरी के लिए खर्च होगा। पहले पांच से 14 वर्ष आयु वर्ग तक के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा अनिवार्य थी, अब तीन से 18 वर्ष आयु वर्ग तक के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा अनिवार्य होगी। अब रटने से काम नहीं चलेगा, पढ़ाई व्यवहारिक होगी। शिक्षाविदों के मुताबिक इसमें कोई शक नहीं कि नई शिक्षा नीति की इन बातों ने आलोचकों के मुंह बंद कर दिए हैं, लेकिन व्यवहारिक रूप से यह नीति तभी सफल होगी, जब इसे मजबूती से लागू किया जाएगा।
निजी स्कूलों की तरफ भाग रहे अभिभावक अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए सरकारी स्कूलों की ओर लौटेंगे। सरकारी स्कूलों में भी प्राइवेट स्कूलों की तरह प्रयोगशालाएं, बिजली, पानी कुर्सी, मेज जैसी सहूलियतें होंगी और फीस भरने से पहले अभिभावकों को अपनी जेब नहीं टटोलनी होगी। अगर, ऐसा नहीं हुआ तो नई शिक्षा नीति भी 1964 में आए कोठारी कमीशन की सिफारिशों की तरह सिर्फ बड़ी-बड़ी बातों तक ही सीमित रह जाएगी।
‘अच्छी नीतियां तो लाई जाती हैं लेकिन आवश्यकता है कि उनका क्रियान्वयन इस ढंग से हो कि हम सबको उसका अपेक्षित परिणाम दिखे। हम जानते हैं कि यह आसान नहीं है। इसके क्रियान्वयन के लिए उद्यम करना होगा और ऐसे लोगों की आवश्यकता होगी जो लगातार परिश्रम कर इसको सफल बनाएं।’ प्रो. आरआर तिवारी, कुलपति , इविवि
‘अब तक सेंट्रल और स्टेट मिलाकर शिक्षा पर जीडीपी का 2.7 फीसदी भी खर्च नहीं हो पा रहा था। अच्छी बात है कि जीडीपी का छह फीसदी हिस्सा खर्च करने की बात की जा रही है। लेकिन, नीति बनाने और उसे लागू करने में बड़ा अंतर है। नीति ऐसी होनी चाहिए कि लोग प्राइवेट स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों की ओर लौटें। स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर हो।’ प्रो. मनमोहन कृष्ण, अर्थशास्त्र विभाग, इविवि
‘शिक्षा में बदलाव समय की मांग है, लेकिन सिर्फ नीति बना लेने से काम नहीं चलेगा। इसे मजबूती के साथ लागू किए जाने की जरूरत है और यह तभी हो सकेगा, जब योग्य और कर्मठ लोगों को इस कार्य में लगाया जाएगा। कोई भी नीति तभी सफल होती है, जब उस पूरी इमानदारी के साथ उस पर काम किया जाए।’ प्रो. रामेंद्र कुमार सिंह, परीक्षा नियंत्रक, इविवि
‘नीति को लागू किए जाने की व्यवस्था का विकेंद्रीकरण होना चाहिए था, लेकिन उसका केंद्रीयकरण हो गया। सैद्धांतिक रूप से तो नीति ठीक है लेकिन व्यवहारिक स्तर पर इसे लागू करने में कठिनाई आ सकती है। इस नीति में ड्रॉपआउट पर स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है। सरकारी स्कूलों, कॉलेजों की कक्षाओं में 30 फीसदी भी उपस्थिति नहीं होती है। इसके लिए भी कुछ करना चाहिए।’ डॉ. अतुल कुमार सिंह, प्राचार्य, इलाहाबाद डिग्री कॉलेज‘केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के तकरीबन आधे पद खाली हैं और नियुक्तियां वर्षों से रुकी हैं। शिक्षकों को नियुक्त किए बिना छात्रों के लिए सीटों की संख्या लगतार बढ़ाई जाती रही है। ऐसे में नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए संसाधन कहां से आएंगे। जाहिर सी बात है कि पूरा फोकस शिक्षा के निजीकरण पर है।’ डॉ. उमेश प्रताप सिंह, ऑक्टा महासचिव