लखनऊ : चालू सत्र के लिए विभिन्न पाठ्यक्रमों की शुल्क भरपाई की राशि कम की जा सकती है। कोरोना काल में ऑनलाइन कक्षाओं के कारण शिक्षण संस्थानों पर कम हुए व्यय-भार को देखते हुए इस पर विचार किया जा रहा है। हालांकि इस मामले में कोई अंतिम फैसला शासन स्तर से ही होगा।
प्रदेश सरकार सभी वर्गों के गरीब छात्रों को छात्रवृत्ति के साथ शुल्क भरपाई की सुविधा देती है। अनुसूचित जाति व जनजाति के परिवारों की सालाना आमदनी ढाई लाख रुपये और शेष वर्गों के लिए दो लाख रुपये सालाना आमदनी होने पर यह सुविधा दी जाती है। कोई भी छात्र न्यूनतम 75 फीसदी उपस्थिति होने पर इस सुविधा का लाभ ले सकता है। हालांकि, अभी तक यह व्यवस्था ऑनलाइन क्लासेज के आधार पर थी। पहली बार इसे ऑनलाइन पढ़ाई के आधार पर करने पर भी सहमति बन चुकी है। समाज कल्याण विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक ऑनलाइन पढ़ाई में जहां छात्रों का डाटा, लैपटॉप, कंप्यूटर या स्मार्टफोन का खर्च बढ़ जाता है, वहीं शिक्षण संस्थानों पर भार कम होता है। विद्यार्थियों के शिक्षण संस्थान में न आने से उनके कई तरह के खर्चे (बिजली-पानी व प्रयोगशाला आदि से संबंधित) बचते हैं। इसी आधार पर शुल्क प्रतिपूर्ति की राशि भी कम करने पर विचार किया जा रहा है। जिस अनुपात में शुल्क प्रतिपूर्ति की राशि कम की जाएगी, उसी अनुपात में शिक्षण संस्थानों को भी अपनी फीस कम करनी होगी।
शासन के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि इस संबंध में तमिलनाडु में लागू व्यवस्था का अध्ययन कराया जा रहा है। इसके लिए केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधिकारियों से भी संपर्क साधा गया है। अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर समाज कल्याण विभाग इस बाबत ठोस प्रस्ताव तैयार करके शासन को भेजेगा। सभी संबंधित विभागों से बात करके शासन इस मुद्दे पर उचित निर्णय लेगा।
इस तरह होती है शुल्क भरपाई : प्रदेश में अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों की पूरी फीस की भरपाई की जाती है, जबकि सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोचिंग की व्यवस्था लागू है। इसके तहत समूह-1 के पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों के लिए अधिकतम 50 हजार हजार, समूह-3 में 20 हजार रुपये की प्रतिपूर्ति की जाती है। इसी तरह समूह-2 के पाठ्यक्रमों में अधिकतम 30 और समूह-4 के पाठ्यक्रमों में अधिकतम 10 हजार रुपये की शुल्क प्रतिपूर्ति की जाती है।