प्रयागराज : यूपी बोर्ड IAS , PCS , मेडिकल, इंजीनियरिंग जैसे करियर की चकाचौंध में बच्चे नहीं पढ़ना चाह रहे कृषि
संजोग मिश्र,प्रयागराज | झांसी में रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय का दिल्ली से ऑनलाइन उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को कृषि शिक्षा को स्कूल स्तर पर ले जाने की आवश्यकता बताई थी। यूपी बोर्ड बहुत पहले से हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के स्तर पर कृषि की पढ़ाई कराता आ रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि आईएएस-पीसीएस, मेडिकल-इंजीनियरिंग जैसे कॅरियर की चकाचौंध के बीच बच्चे कृषि की पढ़ाई करना ही नहीं चाहते। कृषि के प्रति छात्रों की बेरुखी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2020 की यूपी बोर्ड की परीक्षा के लिए पंजीकृत 55 लाख छात्र-छात्राओं की तुलना में कृषि की पढ़ाई करने वाले बच्चों की संख्या एक प्रतिशत या तकरीबन 57 हजार थी।हाईस्कूल में 29708 और इंटर में 2937 छात्र-छात्राएं पंजीकृत थे। खास बात यह है कि 11वीं और 12वीं दोनों कक्षाओं की परीक्षा यूपी बोर्ड कराता है। अन्य विषयों में 11वीं की परीक्षा स्कूल स्तर पर ली जाती है।
*कृषि के क्षेत्र में अवसरों की नहीं है कमी*
सब जानते हैं कि भारत कृषि प्रधान देश है और यही कारण है कि कृषि सर्वाधिक रोजगारपरक कोर्स है। इसमें नौकरी के अलावा स्वरोजगार की अपार संभावनाएं हैं। कुलभास्कर आश्रम कृषि इंटर कॉलेज के प्रवक्ता कृषि रमन सिंह बताते हैं कि कृषि की पढ़ाई करने वाले छात्र परंपरागत खेती के अलावा मधुमक्खी, मत्स्य व मुर्गी पालन के अलावा मशरूम व औषधीय खेती कर सकते हैं। 12वीं करने के बाद बीएससी कृषि, बीएससी फॉरेस्ट्री, बीएससी हार्टीकल्चर, बीएससी फिशरीज आदि करने के बाद सरकारी एवं प्राइवेट संस्थानों में रोजगार पा सकते हैं। कीटनाशक, खरपतवारनाशक व खाद की कंपनी जैसे इफ्को, कृभको में इनकी डिमांड है। इंजन, ट्रैक्टर, पाइप कंपनी में अच्छा पैसा मिलता है। सरकारी सेवा में पशुधन, कृषि, उद्यान, फॉरेस्ट ऑफीसर, कृषि प्रसार अधिकारी, बैंक पीओ कृषि समेत कई अवसर हैं।
*आने वाले समय में हालात सुधरने की उम्मीद*
कृषि की पढ़ाई के प्रति छात्रों का रुझान आने वाले दिनो में बढ़ने की उम्मीद है। कुलभास्कर आश्रम कृषि इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्या डॉ. प्रमोद कुमार श्रीवास्तव के अनुसार सन 2000 तक काफी बच्चे कृषि की पढ़ाई करने आते थे। लेकिन उसके बाद संख्या कम हुई। 2010 में तो कक्षा 9 से 12 तक महज 125 छात्र अध्ययनरत थे। 2015 तक 150 से 175 तक संख्या सीमित रही। पिछले साल तकरीबन 400 बच्चे पंजीकृत थे। कृषि की पढ़ाई कराने वाले जिले के इस एकमात्र स्कूल में कभी आसाम, मेघालय तक से छात्र पढ़ने आते थे। शुरू से बिहार के काफी बच्चे आते हैं।