बस्ती : मिटाया अंधविश्वास का अंधेरा, जलाई शिक्षा की रोशनी मिटाया अंधविश्वास का अंधेरा, जलाई शिक्षा की रोशनी कप्तानगंज विकास क्षेत्र के कौड़ी कोल निवासी शिव पूजन आर्य बताते हैं कि उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। 1982 में ऐठी में उन्होंने एक निजी विद्यालय से अध्यापन का कार्य शुरू किया। अगल-बगल के गांव में यह मान्यता थी कि जिस घर के बच्चे स्कूल में पढ़ने जाते हैं वह जीवित नहीं रहते। उन्होंने इस अंधविश्वास को तोड़ा और बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उनके अभिभावकों को प्रेरित किया।
Author: Jagran
बस्ती: पेशे से शिक्षक शिवपूजन गांव-गांव तक शिक्षा का उजाला फैलाने की मुहिम में लगे हुए हैं। किसी गांव में उन्होंने अंधविश्वास को तोड़ बच्चों को शिक्षा से जोड़ा तो कहीं घर-घर जाकर शिक्षा की अलख जगाई। यहां तक अपने वेतन के पैसे से जरूरत पड़ने पर बच्चों को पठन-पाठन सामग्री भी उपलब्ध कराते हैं। इस काम में वह तीन दशक से लगे हुए हैं। मुहिम अभी जारी है।
कप्तानगंज विकास क्षेत्र के कौड़ी कोल निवासी शिव पूजन आर्य बताते हैं कि उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। 1982 में ऐठी में उन्होंने एक निजी विद्यालय से अध्यापन का कार्य शुरू किया। अगल-बगल के गांव में यह मान्यता थी कि जिस घर के बच्चे स्कूल में पढ़ने जाते हैं, वह जीवित नहीं रहते। उन्होंने इस अंधविश्वास को तोड़ा और बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उनके अभिभावकों को प्रेरित किया। यहां तक वह खुद ही बच्चों को उनके घर से स्कूल लेकर जाते। धीरे-धीरे स्कूल न भेजने का अंधविश्वास मिट गया। वह 1 जुलाई 1987 को परिषदीय विद्यालय के शिक्षक बन गए। पहली तैनाती प्राथमिक विद्यालय बढ़नी में हुई, जहां पढ़ने के लिए बच्चे घर से निकलना ही नहीं चाहते थे। उन्होंने घर-घर जाकर न सिर्फ शिक्षा की अलख जगाई बल्कि अभिभावकों को इसके लिए जागरूक किया। वेतन के पैसे में से गरीब बच्चों को पुस्तकें भी उपलब्ध कराते थे। 1996 से 2003 तक कौड़ी कोल के प्राथमिक विद्यालय तथा 2003 से 2006 तक यहीं पर पूर्व माध्यमिक विद्यालय में शिक्षण कार्य करते हुए अपनी एक अलग पहचान बनाई । 16 अप्रैल 2005 से 2018 तक ब्लाक समन्वयक व सह समन्वयक के रूप में काम करते हुए विकासखंड के सभी विद्यालयों में जाकर शैक्षिक वातावरण के सृजन के लिए पूरा प्रयास किया। इस दौरान जिले स्तर पर प्रशिक्षक के रूप में चयनित होकर आर्य ने बच्चों को कौन कहे शिक्षकों को भी शिक्षण के गुर सिखाए ।
अप्रैल 2018 में इनकी तैनाती दुबौलिया विकासखंड के पूर्व माध्यमिक विद्यालय फेरसहन में हुई जहां अब भी कार्यरत हैं। यहां जगदीशपुर रसोइया व महादेवा के बच्चे पढ़ने की बात तो दूर स्कूल जाने से भी कतराते थे। इन गांव के कुछ हिस्सों में कच्ची शराब बनती थी। जहां पूरा का पूरा परिवार इसी काम में लगा रहता था। ऐसे में बच्चों को पढ़ाने पर कोई ध्यान नहीं दे पाता था। वहां आर्य ने रात दिन शिविर लगाकर बच्चों को पढ़ाने का कार्य किया। कापी, कलम अपने पैसे से खरीद कर बच्चों को मुहैया कराते थे। यहां हर घर को पाठशाला के रूप में सजाने लगे, जिससे इस गांव के बच्चों ने नियमित स्कूल जाना शुरू कर दिया।
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दिलों में बनाई जगह
अपनी मुहिम से शिवपूजन ने लोगों के दिलों में भी जगह बना ली है। ग्राम पंचायत ऐंठीडीह के राजस्व ग्राम मेढौआ निवासी रामसेवक, रामकरण चौधरी, समयदीन, शिवप्रसाद तिवारी ने बताया कि तीन दशक पहले गांव के बच्चों को स्कूल नहीं भेजा जाता था। ऐसी धारणा थी कि जो बच्चे स्कूल जाते वह जिंदा नहीं रहते थे। आज यह अंधविश्वास टूट चुका है। दुबौलिया विकास क्षेत्र के जगदीशपुर गांव निवासी रामरूप और राधेश्याम ने बताया कि पांच साल पहले भरू व जगदीशपुर गांव में कच्ची शराब बनती व बिकती थी। बच्चों को स्कूल नहीं भेजा जाता था। शिक्षक शिवपूजन आर्य पहुंचे तो घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया। शुरू में वह अवकाश के दिनों में इन दोनों गांवों के बच्चों को घर पर ही पढ़ाने जाते थे। इस तरह बच्चों में पढ़ने की ललक पैदा की। अब गांव में शराब बनती न ही बिकती है। बच्चे पढ़ने स्कूल भी जाते हैं।