एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग
की समस्त सूचनाएं एक साथ

"BSN" प्राइमरी का मास्टर । Primary Ka Master. Blogger द्वारा संचालित.

जनपदवार खबरें पढ़ें

जनपदवार खबरें महराजगंज लखनऊ इलाहाबाद प्रयागराज गोरखपुर उत्तर प्रदेश फतेहपुर सिद्धार्थनगर गोण्डा बदायूं कुशीनगर सीतापुर बलरामपुर संतकबीरनगर देवरिया बस्ती रायबरेली बाराबंकी फर्रुखाबाद वाराणसी हरदोई उन्नाव सुल्तानपुर पीलीभीत अमेठी अम्बेडकरनगर सोनभद्र बलिया हाथरस सहारनपुर श्रावस्ती बहराइच मुरादाबाद कानपुर अमरोहा जौनपुर लखीमपुर खीरी मथुरा फिरोजाबाद रामपुर गाजीपुर बिजनौर बागपत शाहजहांपुर बांदा प्रतापगढ़ मिर्जापुर जालौन चित्रकूट कासगंज ललितपुर मुजफ्फरनगर अयोध्या चंदौली गाजियाबाद हमीरपुर महोबा झांसी अलीगढ़ गौतमबुद्धनगर संभल हापुड़ पडरौना देवीपाटन फरीदाबाद बुलंदशहर

Search Your City

महराजगंज : दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को उनकी रचना पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास के लिए मिला इंडियन आर्टिस्ट अवार्ड 2021 क्लिक कर देखें

0 comments
महराजगंज : दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल को उनकी रचना पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास के लिए मिला इंडियन आर्टिस्ट अवार्ड 2021 क्लिक कर देखें


सागर_कला_भवन_फैजाबाद_अयोध्या (संस्कृति भारती) की पूरी टीम को मुझ अकिंचन को INDIAN_ARTIST_AWARD_2021 से सम्मानित करने के लिए सहृदय आभार नमन वन्दन करते हुए ढेर सारी शुभकामनाएं संप्रेषित किया - पूरी रचना देखें👇👇
पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास,
नहीं होश है मानव संकट में हार रहा इतिहास।

आसूं औ दहशत का आलम हर नयनों में उभर रही,
जानें कितने आशाओं पर बज्र पात सी मचल रही।
ऐ मरने वालों सुनों गुज़ारिश वोट डालते जाओ तुम,
निष्ठुर  समय  बता  रहा  है  मृत्यु  द्वारे  सजल  रही।
राजनीति का चाबुक ऐसा अटक रही हैं सांसें अब,
जीत रही सियासत देखो हारी ले मानवता उपहास।
पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास,
नहीं होश है मानव संकट में हार रहा इतिहास।

सांसों का संकट है फैला कभी यहां और कभी वहां,
सभी दलों के नेता सारे एक्जिट पोल पर लड़े जहां।
कहीं बिलखता बचपन है तो कहीं जवानी डूब गयी,
देखो सारे श्रवण तुम्हारे घातक बाणों से मरे जहां।
कटुता-कपट-कुसंगत तेरे पर उपदेश कुशल बहुतेरे,
सब कालखण्ड में अंकित होंगें ले स्वर्णिम इतिहास।
पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास,
नहीं होश है मानव संकट में हार रहा इतिहास।

जब भी रावण खड़ा सामने दिख जाये लो चेत,
संहारक हैं कृष्ण धरा की करें श्रीराम सा हेत।
उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम  हाहाकार  चहुंओर,
लेकिन तृष्णा नहीं गयी है हैं गज़ब चरित्र के प्रेत।
इस समर का पहर बहुत है बाकी करनी है गणना,
ताप-तपित धरती है व्याकुल स्वार्थ लोभ बनवास
पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास,
नहीं होश है मानव संकट में हार रहा इतिहास।

सुविधा है अनगिनत जहां में फिर भी संकट है गहरा,
सुख के सब सामान जुटाके देते है मरघट में पहरा।
हर प्राणी है सहमा-सहमा मृत्यु का आभास लिए,
सदा सत्य है मृत्यु लेकिन फिर भी जीवन है गहरा।
नैतिकता के रखवाले सारे सच्चे साधक चले गये,
सम्प्रभुता पाने की खातिर कर डाले बकवास।
पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास,
नहीं होश है मानव संकट में हार रहा इतिहास।
          © दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

महत्वपूर्ण सूचना...


बेसिक शिक्षा परिषद के शासनादेश, सूचनाएँ, आदेश निर्देश तथा सभी समाचार एक साथ एक जगह...
सादर नमस्कार साथियों, सभी पाठकगण ध्यान दें इस ब्लॉग साईट पर मौजूद समस्त सामग्री Google Search, सोशल नेटवर्किंग साइट्स (व्हा्ट्सऐप, टेलीग्राम एवं फेसबुक) से भी लिया गया है। किसी भी खबर की पुष्टि के लिए आप स्वयं अपने मत का उपयोग करते हुए खबर की पुष्टि करें, उसकी पुरी जिम्मेदारी आपकी होगी। इस ब्लाग पर सम्बन्धित सामग्री की किसी भी ख़बर एवं जानकारी के तथ्य में किसी भी तरह की गड़बड़ी एवं समस्या पाए जाने पर ब्लाग एडमिन /लेखक कहीं से भी दोषी अथवा जिम्मेदार नहीं होंगे, सादर धन्यवाद।