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सोनभद्र :अगर शिक्षक राज्य कर्मचारी होते तो आनलाइन उपस्थिति निर्विरोध होती-डॉ बृजेश महादेव शिक्षक एवं साहित्यकार सोनभद्र

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अगर शिक्षक राज्य कर्मचारी होते तो आनलाइन उपस्थिति निर्विरोध होती 

                 डॉ बृजेश महादेव 
       शिक्षक एवं साहित्यकार 
             सोनभद्र 

हम विश्व की अनोखी हड़ताल कर रहे हैं जिसमें राष्ट्र का नुकसान नहीं हो रहा है। उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद के लगभग 6 लाख शिक्षक - शिक्षामित्र - अनुदेशकों की यह हड़ताल शिक्षक समस्याओं के निदान किए बिना ऑनलाइन हाजिरी लागू करने के विरोध को लेकर है। एसी कमरों में बैठकर नित नए आदेश जारी करने वाले उच्च अधिकारियों को उनकी बिल्कुल परवाह नहीं है। यह अधिकारी समाज में शिक्षकों को बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। इनके तानाशाही रवैए से शिक्षक समाज परेशान हैं। 
बचपन में हम सुनते रहते थे कि अमुक देश के नागरिक व कर्मचारी इस तरह से हड़ताल करते हैं कि राष्ट्र का नुकसान नहीं होता। आज यह हड़ताल हम सब देख रहे हैं। देखना समाज व मीडिया जगत के जागरूक साथियों को भी चाहिए। यह हड़ताल कार्य बहिष्कार तक न पहुंचे इसकी जिम्मेदारी भी शासन की है वह समय रहते संवाद करते हुए मूलभूत समस्याओं का निस्तारण कराएं।
कुछ लोगों द्वारा बार-बार कहा जा रहा है कि यदि शिक्षक समय से स्कूल जाते हैं तो ऑनलाइन अटेंडेंस का विरोध क्यों ? ऑनलाइन अटेंडेंस का विरोध इसलिए हो रहा है कि सुविधाएं कुछ नहीं मिल रही हैं बल्कि हमारी विश्वनीयता पर बेवजह सवाल उठाया जा रहा है। अब आपको समझना है कि यदि हम विरोध कर रहे हैं तो क्यों? हम केवल इतना कह रहे हैं कि हमारी सामान्य मानवीय मांगों को पूरा कर दीजिए, हम आपके हर कदम में जैसे आपके साथ कल भी थे, आज भी हैं, आगे भी रहेंगे। अब हमारी मानवीय मांगे हैं क्या? हमारी छोटी सी मांग है कि हमें तीस ईएल व  चौदह सीएल के साथ साथ पंद्रह हाफ सीएल और दे दीजिये। क्योंकि शिक्षकों के माता-पिता परिजन के स्वर्गवास के उपरान्त त्रयोदश संस्कार (13 दिन की अवधि में ) में हमें घर मे ही रहना पड़ता है। बताईये, क्या शिक्षक अपना धर्म कर्म छोड़ दें या अपनी जिम्मेदारी छोड़ दें? यदि नही तो कैसे वह अपने धर्म का पालन करें क्योंकि हमारे पास तो अवकाश की कोई ऐसी उपलब्धता ही नही। उन्हें तो अपना स्वयं का विवाह भी चिकित्सिकीय अवकाश लेकर करना पड़ता है। क्या यह विधि सम्मत है ? क्या इसका दुरुपयोग भविष्य में हमारे विरुद्ध नहीं किया जा सकता ? पत्नी की नॉर्मल या सिजेरियन डिलीवरी होनी हो तो बेसिक विद्यालय में कार्यरत पुरुष शिक्षक के पास अपनी पत्नी की देखभाल करने के लिए कोई विशेष छुट्टियां होती ही नहीं, आकस्मिक अवकाश से काम चलाना पड़ता है। हमारा यह भी कहना है कि हमें नही चाहिए गर्मी और ठण्डी की छुट्टियां क्योंकि आप हमें देते भी कहाँ हैं, बच्चों का अवकाश रहता है और शिक्षक कहीं न कहीं शैक्षणिक या गैर शैक्षणिक कार्यों में संलग्न रहते हैं। बेवजह बदनाम है शिक्षक इन गर्मी-ठण्डियों की छुट्टियों की वजह से। इसी बार की गर्मी की छुट्टियों को ही ले लीजिये, 20 मई से छुट्टियां शुरू हुईं, तब तक चुनाव की ट्रेनिंग करवाया गया फिर चुनाव करवाया गया उसके बाद वोट की काउंटिंग हुई, मतदान का रिजल्ट निकला जून में और फिर जून में ही समर कैंप का आदेश आ गया, विरोध तो होगा ही क्योंकि छुट्टियों के नाम पर अध्यापक तो बदनाम ही है..... ये कौन सी छुट्टी है भाई, क्या बीमारी या कोई घरेलू कार्यक्रम गर्मी या ठण्डी में ही पूंछ कर आते हैं क्या ?
          आप अवकाश में भी हमें ज्यादातर विद्यालय बुलाते हैं। चलो कोरोना के समय विद्यालय का एक घण्टा समय बढ़ाया गया कि क्षतिपूर्ति के लिए है, उस बढ़ाये गये समय पर कभी कोई बात नही हुई, कोरोना समय पर हमारे वेतन से जो दान/कटौती हुई उस पर कोई चर्चा नहीं हुई, शिक्षक भी आपदा के नाम पर सहयोग पूर्ण व शान्ति पूर्वक सहयोग करता रहा डिजिटल हाजिरी की तरफदारी करने वाले हर उस इंसान से सवाल है कि जब कोरोना काल में चुनाव कराते हुए न जाने कितने शिक्षक कोरोना की चपेट में आकर बीमार हो रहे थे और कई स्वर्गवासी भी हो गए तब किसी ने विरोध भी नहीं किया कि शिक्षक मर भी रहा है। आप अवकाश में बुलाओ कोई बात नही लेकिन प्रतिकर अवकाश तो दे दीजिए। बेसिक शिक्षकों का तो अध्ययन अवकाश भी खत्म कर दिया गया। हम भी मानव हैं, घर-परिवार और सामाजिक जिम्मेदारियां हैं। हम शिक्षक सौम्य व सरल स्वभाव के हैं कृपया हमें मानव ही रहने दें, हमें मशीन न बनाएं। काम सबसे अधिक लेंगे, सुविधा बिल्कुल नही देंगे। न समय से प्रमोशन, न समय से समायोजन, न जनपद के अन्दर समय से ट्रांसफर। बेसिक शिक्षा परिषद् के शिक्षक के पास सुरक्षा और सुविधायें तो छोड़िए राज्य कर्मचारी का दर्जा तक नही हैं, बुढ़ापे का सहारा पुरानी पेंशन छीन ही ली गयी है, चिकित्सा की कोई सुविधा नही है जबकि सबसे अधिक दूर-दराजों में, विषम परिस्थितियों में हमारे शिक्षक भाई-बहने कार्यरत हैं। चाहे सड़क टूटी हो, पेड़ गिरे हों, रेलवे फाटक बंद हो, नदी में बाढ़ आई हो, कोहरा गिर रहा हो या लू, आँधी-तूफान या चक्रवात हो...... इन सब विषम परिस्थितियों से भी जो शिक्षक बच जाएगा वह रिटायर होने के बाद बुढ़ापे में दूसरों पर आश्रित होकर एक-एक पैसे के लिए मोहताज रहेगा क्योंकि अब उसके पास पुरानी पेंशन भी नहीं है। बस ऑनलाइन अटेंडेंस चाहिए।
एक शिक्षक एक वर्ष में स्वेच्छा से केवल  14 अवकाश ले सकता है। हम भी भारत के नागरिक है और इसी समाज से आते हैं आखिर एक शिक्षक 14 अवकाश में वर्ष भर कैसे बिताएं? हमारे कंधों पर घर/परिवार/समाज की जिम्मेदारी है यदि किसी के यहां शादी या शोक हो तो उसमें वे कौन सा अवकाश ले। अभी तक शिक्षक मेडिकल या अवकाश से समायोजित करता था। लेकिन जब 1 मिनट की देरी में अनुपस्थित होगा तो उसके पास केवल मेडिकल का विकल्प है क्या वो फर्जी मेडिकल लेकर मनुष्य जीवन के इन कार्यों को करेगा??? हमें समाज व मीडिया जगत में व्यापक प्रचार प्रसार करने की आवश्यकता है कि शिक्षक अपनी उपस्थित सदैव देता रहा है। विद्यालय जांच करने में पूरा सरकारी तंत्र है। शिक्षक ऑनलाइन व्यवस्था का विरोध अपनी मांग न माने जाने के कारण कर रहा है। विद्यालय समय से पहुंचकर छात्रों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्बाध निर्वहन कर रहे शिक्षकों द्वारा आनलाइन हाजिरी न देने के कारणों को मीडिया एवं उच्चाधिकारियों द्वारा गलत ढंग से आम जनमानस में दुष्प्रचारित करने एवं मुख्यमंत्री को गुमराह करने के संदर्भ में हमारा कहना यह है कि तब तक आनलाइन हाजिरी के बहिष्कार का निर्णय किया है जब तक सरकार हाफ सीएल, तीस ईएल एवं विश्वविद्यालय के अध्यापकों की तरह पीएल(प्रीवलेज लीव) की व्यवस्था हम परिषदीय शिक्षकों/शिक्षामित्रों/अनुदेशकों के लिए नहीं कर देती। इस आंदोलन के शुरुआत से  पूरे प्रदेश के शिक्षक साथियों का बस इतना कहना है कि सरकार जब तक जरूरी सुविधाएं हम शिक्षकों को नहीं दे देती तब तक आनलाइन हाजिरी नहीं दी जाएगी इसके बावजूद जिस ढंग से प्रिंट/इलेक्ट्रानिक मीडिया तथा शासन में अपने एसी कमरों में बैठे उच्चाधिकारियों द्वारा शिक्षकों के खिलाफ समाज एवं आम जनमानस में दुष्प्रचार किया जा रहा है उन्हें कामचोर, छात्र एवं सरकार विरोधी कहा जा रहा है यह बेहद आपत्तिजनक है। 
बिना जमीनी हकीकत को जाने व नीति योजना के बिना शिक्षकों पर ऑनलाइन उपस्थिति थोपना किसी निरंकुशता से कम नहीं है। इस दमनकारी नीति के विरोध में पूरा शिक्षक समाज एक हफ्ते से अपने कार्य को करते हुए आंदोलनरत है। लेकिन शासन का गलियारा अभी भी संगठन से दूरी बनाकर व अलग अलग तरीक़े से दबाव बनाकर शिक्षक पर यह व्यवस्था थोपना चाहता है। जो इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में शिक्षक समाज के ऊपर अन्याय के रुप में जाना जाएगा। जब तक आनलाईन उपस्थिति का आदेशवापस नहीं लिया जाता है तब तक शिक्षक आंदोलनरत् रहते हुए हर संघर्ष को समर्थन देता रहेगा। यह संघर्ष सिंह गर्जना से नही चल सकता। एक गर्जना तो बर्दाश्त कर ली जा सकती है लेकिन लाखों की भुनभुनाहट नही। इसलिए हमें मधुमक्खियों की जीवन शैली से सीखना है। हम सब उनकी एकता, सहयोग और एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी के गुण को अपने अंदर निहित कर संघर्ष पथ पर आगे बढ़ने का संकल्प लेंगे। यह संघर्ष हमारी मांग पूर्ण होने तक सतत चलता रहेगा। इसलिए हम सब एकदूसरे के हौसला बने। यदि किसी को कोई समस्या आए तो बताएं। लेकिन उपस्थित न देने के प्रण को तोड़ना नही है। जब भी जो संगठन आह्वाहन करें हम सब अपनी पूरी ताकत से जाएं  ।
निसंदेह समय से शिक्षक का विद्यालय पहुंचना आवश्यक है। किंतु समय से एंबुलेंस का पहुँचना  और चिकित्सा भी आवश्यक है।समय से पुलिस का पहुँचना भी  आवश्यक है। समय से  फायरब्रिगेड का पहुंचना भी आवश्यक है। समय से रेलगाड़ी का चलना भी आवश्यक है। समय से हवाई जहाज का उड़ना भी आवश्यक है। समय से रोजगार भी मिलना आवश्यक है। समय से पदोन्नति, स्थानांतरण , महेंगाई भत्ता, एरियर,चयन वेतनमान  भी आवश्यक है।  समय से जनकल्याण की नीतियों का निर्माण  भी आवश्यक है। समय से गरीबी उन्मूलन भी आवश्यक है। समय से भ्रष्टाचार, आतंकवाद, और अपराध पर अंकुश लगाना भी आवश्यक है। समय से सभी विभागों के कर्मचारियों को आना भी आवश्यक है। जब भारत को विकसित करने , नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने, उनके मूलाधिकारों का संरक्षण करने के लिए देश के सभी नेता, न्यायमूर्ति , अधिकारी और कर्मचारी का  कार्य समय से करना आवश्यक है तो समय की प्रतिबद्धता का  प्रमाण केवल   शिक्षकों से ही क्यों मांगा जा रहा है? विद्यालयों मे फ़र्नीचर, किताबें, खाद्यान्न, दूरसंचार नेटवर्क,  बिजली की आपूर्ति और कंपोजिट ग्रांट तो आज तक  समय से उपलब्ध  करा नही पाए और चले शिक्षकों पर उंगली उठाने का क्या मतलब है। याद रखिये  धनानंद से अपने अपमान से बदला लेने  के लिए, उसके सम्राज्य को ध्वस्त करने के लिए एक ही चाणक्य पर्याप्त था किंतु आज  तो  चाणक्यों की संख्या 6 लाख से भी अधिक है।


वरिष्ठ जिला उपाध्यक्ष 
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ सोनभद्र

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