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प्रयागराज : 26 साल से बकाया वेतन पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे बेसिक शिक्षक को हाईकोर्ट से मिला इंसाफ, मय ब्याज मिलेंगे सवा करोड़ रुपये

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प्रयागराज : 26 साल से बकाया वेतन पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे बेसिक शिक्षक को हाईकोर्ट से मिला इंसाफ, मय ब्याज मिलेंगे सवा करोड़ रुपये

अधिकारियों पर उठ रहे सवाल! जब 2002 में ही कोर्ट ने वेतन भुगतान का आदेश दिया था, तो इसे 2023 तक क्यों टाला गया? 

26 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ने वाले बेसिक शिक्षक को अंततः हाईकोर्ट से मिला इंसाफ


बेसिक शिक्षा विभाग की लेटलतीफी और गैरजिम्मेदाराना रवैए ने एक शिक्षक को 26 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ने पर मजबूर कर दिया। यह मामला केवल एक व्यक्ति के अधिकारों का हनन नहीं है, बल्कि यह सरकारी व्यवस्था की संवेदनहीनता और अधिकारियों की उदासीनता का एक ज्वलंत उदाहरण है।

लक्ष्मण प्रसाद कुशवाहा, जो मृतक आश्रित कोटे में 1994 से बिना वेतन के सेवा दे रहे थे, को 88 लाख रुपये ब्याज सहित सवा करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश हाईकोर्ट ने दिया है। सवाल यह है कि जब 2002 में ही कोर्ट ने वेतन भुगतान का आदेश दिया था, तो इसे 2023 तक क्यों टाला गया? क्या यह अधिकारियों की जिम्मेदारी नहीं थी कि वे समय पर न्यायालय के आदेश का पालन करें?



26 साल से बकाया वेतन पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे बेसिक शिक्षक को मिला इंसाफ, मय ब्याज मिलेंगे सवा करोड़ रुपये

अधिकारियों की लेटलतीफी से शिक्षक को 88 लाख ब्याज अदा करेगी सरकार

30 सितम्बर तक भुगतान नहीं करने पर बेसिक शिक्षा निदेशक पर निर्मित होगा अवमानना का आरोप


प्रयागराज। इलाहावाद हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा निदेशक को 26 साल से बकाया वेतन पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे शिक्षक का भुगतान एक हफ्ते में करने का निर्देश दिया है। ऐसा करने से विफल रहने पर 30 सितंबर को अदालत में अवमानना की कार्यवाही के लिए हाजिर रहने का आदेश दिया है।

हैरान कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों की लेटलतीफी की वजह से सरकार को ब्याज के रूप में 88 लाख रुपये भुगतान करना पड़ेगा। यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय की अदालत ने बलिया के जूनियर हाईस्कूल के शिक्षक लक्ष्मण प्रसाद कुशवाहा की ओर से दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।



याची की नियुक्ति मृतक आश्रित कोटे में दो जुलाई 1994 से जूनियर हाईस्कूल बलिया में हुई थी। तब से यह बिना वेतन के पढ़ा रहा था। हाईकोर्ट ने 22 अप्रैल, 2002 को याचिका मंजूर करके बीएसए को नियमित वेतन भुगतान का निर्देश दिया। साथ ही नौ प्रतिशत ब्याज के साथ बकाये वेतन का भुगतान तीन माह में करने का निर्देश दिया था। लेकिन, तत्कालीन बीएसए ने आदेश का पालन नहीं किया।


याची ने एक अन्य याचिका 2009 में भी दाखिल की। उस पर भी मय व्याज बकाये वेतन का भुगतान करने का आदेश हुआ। इसके बावजूद भुगतान नहीं हुआ। मजबूर शिक्षक ने 2009 में अवमानना याचिका दाखिल की, जो 14 साल बाद आज भी लंबित है। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने शिक्षा विभाग से जवाबी हलफनामा मांगा था। आदेश के अनुपालन में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, बलिया और बेसिक शिक्षा विभाग वित्त नियंत्रक व्यक्तिगत हलफनामे दाखिल कर बताया कि रिट कोर्ट के आदेश के अनुपालन के संदर्भ में बेसिक शिक्षा निदेशक को याची के बकाये 1,25,92,090/-रुपये स्वीकृत करने के लिए पत्र लिखा गया है। इसमें वेतन का बकाया और बकाया राशि पर ब्याज भी शामिल है।


कोर्ट ने पाया कि निदेशक की स्वीकृति का अभाव में एक तरफ 14 साल से याची कानूनी लड़ाई लड़ रहा है। दूसरी ओर याची को मिलने वाली धनराशि का ब्याज 88 लाख रुपये से ऊपर जा चुका है। कोर्ट ने हैरानी जताई कि अधिकारियों की लापरवाही के कारण सरकार याची को 88 लाख रुपये का भुगतान करेगी। यह भुगतान देश के करदाताओं के रुपयों से होगा। 


कोर्ट ने बेसिक शिक्षा निदेशक को 30 सितंबर तक याची का पूरा बकाया व्याज सहित भुगतान कर हलफनामा दाखिल करने निर्देश दिया है। अनुपालन न करने पर निर्धारित तारीख पर अवमानना का आरोप निर्मित कराने के लिए अदालत के हाजिर रहने का आदेश दिया है।

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