मुरादाबाद : इंटर कॉलेजों में शिक्षकों की कमी, परिषदीय शिक्षक देंगे सहारा, शिक्षा विभाग का ‘अनोखे’ प्रयोग बना चर्चा की वजह
मुरादाबाद: राजकीय इंटर कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी को देखते हुए प्रशासन ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए परिषदीय शिक्षकों को भी इंटर कॉलेजों में पढ़ाने के लिए नियुक्त किया है। इस योजना के तहत, प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूलों के शिक्षकों को अस्थायी तौर पर राजकीय स्कूलों में पढ़ाने के लिए लगाया गया है।
शिक्षकों की कमी से जूझ रहे स्कूलों को राहत
जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. अरुण कुमार दुबे ने बताया कि जिलाधिकारी के निर्देशानुसार 23 सितंबर को जारी आदेश में राजकीय स्कूलों की शैक्षिक गुणवत्ता सुधारने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया है। इस आदेश में जिले के 25 राजकीय स्कूलों में कुल 52 परिषदीय शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है, ताकि शैक्षिक सत्र के अंत तक छात्रों को उचित शिक्षा मिल सके और पाठ्यक्रम समय पर पूरा किया जा सके।
एकल शिक्षिका की ड्यूटी पर उठे सवाल
हालांकि, कुछ मामलों में इस आदेश की आलोचना भी हो रही है। उदाहरण के तौर पर, कन्या जूनियर हाईस्कूल कुंदनपुर की एकमात्र शिक्षिका प्रशांत कुमारी को राजकीय कन्या इंटर कॉलेज लाइनपार में हिंदी पढ़ाने के लिए भेजा गया है, जबकि उनके मूल स्कूल में कक्षा 6 से 8 तक के 150 छात्र हैं। यह कदम शिक्षकों की मौजूदा कमी को और गहरा सकता है, जिससे छोटे स्कूलों के संचालन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
प्राथमिक शिक्षा पर हो सकता है असर
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के महानगर अध्यक्ष राकेश कौशिक ने इस कदम की निंदा करते हुए कहा, "यदि प्राथमिक शिक्षक जीआईसी में पढ़ाने जाएंगे, तो 'निपुण भारत' के लक्ष्य को कैसे हासिल किया जाएगा?" उनका मानना है कि शिक्षकों की कमी के कारण पहले से ही स्कूलों का संचालन शिक्षामित्रों पर निर्भर है। ऐसे में शिक्षकों की नई ड्यूटी व्यवस्था से प्राथमिक शिक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
विकल्पों की तलाश जारी
हालांकि, महानिदेशक स्कूल शिक्षा के मुताबिक, किसी भी शिक्षक को उनके मूल स्कूल से बाहर अन्य स्कूल या कार्यालय में नहीं लगाया जाएगा। लेकिन, शिक्षकों की कमी से निपटने के लिए यह अस्थायी व्यवस्था की गई है। शिक्षा विभाग उम्मीद कर रहा है कि यह कदम शैक्षिक गुणवत्ता को बनाए रखने में सहायक साबित होगा, जब तक कि रिक्त पदों पर स्थायी भर्ती नहीं हो जाती।
शिक्षा प्रणाली पर दीर्घकालिक प्रभाव
अब देखना होगा कि यह अस्थायी समाधान कितना प्रभावी सिद्ध होता है और क्या यह कदम शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार ला पाता है। साथ ही, इस निर्णय से छोटे स्कूलों और प्राथमिक शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल बना हुआ है।