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नई दिल्ली : सार्वजनिक भलाई के लिए प्रत्येक निजी संपत्ति पर कब्जा कर वितरण का अधिकार सरकार को नहीं, नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 7:2 के बहुमत से सुनाया फैसला

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नई दिल्ली : सार्वजनिक भलाई के लिए प्रत्येक निजी संपत्ति पर कब्जा कर वितरण का अधिकार सरकार को नहीं, नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 7:2 के बहुमत से सुनाया फैसला 

सार्वजनिक भलाई के लिए प्रत्येक निजी संपत्ति पर कब्जा कर वितरण का अधिकार सरकार को नहीं – सुप्रीम कोर्ट 

बहुमत के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कुछ मामलों में ही निजी संपत्तियों को कब्जे में ले सकते हैं राज्य या दावा कर सकते हैं


नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्तियों को समुदाय के भौतिक संसाधन मानते हुए राज्य द्वारा कब्जा करके या अधिग्रहण करके सार्वजनिक भलाई के लिए वितरित करने के अधिकार पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 7:2 के बहुमत से दिए फैसले में कहा है कि सभी निजी संपत्तियां समुदाय के भौतिक संसाधनों का हिस्सा नहीं बन सकतीं और सार्वजनिक भलाई के वितरण के लिए राज्य उन्हें अधिकार में नहीं ले सकते। कुछ मामलों में ही राज्य निजी संपत्तियों को ले सकते हैं या दावा कर सकते हैं। यानी सभी निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन नहीं माना जा सकता जिन्हें राज्य सार्वजनिक भलाई के लिए अपने अधीन ले लें।



सुप्रीम कोर्ट के जहां सरकार के अधिकार की सीमा रेखा खींची है, वहीं उस वर्ग की सोच को भी झटका दिया है जो कहता है कि सभी संपत्तियों का सर्वे करके उन्हें बराबरी से वितरित किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला कहीं न कहीं निजी संपत्ति पर व्यक्ति के अधिकार पर मुहर लगाता है।


प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने कानूनी सवालों का जवाब देते हुए 429 पेज के तीन अलग फैसले दिए, जिसमें सीजेआइ ने स्वयं और छह अन्य न्यायाधीशों हृषिकेश राय, जेबी पार्डीवाला, मनोज मिश्रा, राजेश बिंदल, सतीश अगस्टीन जार्ज से फैसला दिया, जिसमें उपरोक्त व्यवस्था दी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले में कहा है कि किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाले प्रत्येक संसाधन को केवल इसलिए समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं माना वह भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। निजी संपत्ति को समुदाय के भौतिक संसाधन के योग्य मानने  से पहले उसे कुछ परीक्षण करने होंगे। 


कोर्ट ने अनुच्छेद 39 (बी) की व्याख्या करते हुए कहा कि इसके तहत आने वाले संसाधन के बारे में जांच विशेष चीजों पर आधारित होनी चाहिए। इसमें संसाधनों की प्रकृति, विशेषताएं, समुदाय की भलाई पर संसाधन का प्रभाव, संसाधनों की कमी तथा ऐसे संसाधनों के निजी हाथों में केंद्रित होने के परिणाम जैसे कारक हैं। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा विकसित पब्लिक ट्रस्ट के सिद्धांत भी मदद कर सकते हैं, जो समुदाय के भौतिक संसाधन के दायरे में आते हैं।


प्रापर्टी ओनर्स की थी याचिका

मुख्य मामला मुंबई से आया था और मामले में मुख्य याची भी प्रापर्टी ओनर्स एसोसिएशन एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य था।


जस्टिस नागरत्ना ने जताई आंशिक सहमति, जस्टिस धूलिया ने असहमति

जस्टिस नागरत्ना ने अलग से दिए फैसले में बहुमत से आंशिक सहमति जताई, लेकिन जस्टिस धूलिया ने अपने फैसले में बहुमत से पूर्ण असहमति जताते हुए कहा कि भौतिक संसाधनों को कैसे नियंत्रित और वितरित किया जाए, यह देखना संसद का विशेषाधिकार है। उन्होंने कहा कि निजी स्वामित्व वाले संसाधन कब और किस तरह भौतिक संसाधनों की परिभाषा में आते हैं, यह न्यायालय नहीं घोषित कर सकता। यह मामला विशेष तौर पर संविधान के अनुच्छेद 31सी और 39 बी) और (सी) की व्याख्या से जुड़ा था।

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