लखनऊ : पशुचिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में होगा निजी संस्थानों का प्रवेश, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स शुरू करने के लिए सरकारी व निजी संस्थानों में प्रवेश के मानक निर्धारित
25 नवम्बर 2024
लखनऊ: सरकार ने पशुपालन और परापशुचिकित्सा के क्षेत्र में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स शुरू करने के लिए सरकारी व निजी संस्थानों के मानक निर्धारित कर दिए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सा सेवाओं को मजबूत करने और पशु चिकित्सा विज्ञान में प्रशिक्षित पैरावेट्स (पशु स्वास्थ्य कर्मी) की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से सरकारी के साथ साथ निजी संस्थानों को कोर्स संचालित करने की नीति को कैबिनेट की अनुमति मिली थी।
नीति के तहत राज्य में निजी व सरकारी संस्थानों में पशुपालन डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स संचालित किए जा सकेंगे, जिससे पैरावेट्स को प्रशिक्षण और कौशल विकास में सहायता मिलेगी। डिप्लोमा इन वेटेनरी फार्मेसी और डिप्लोमा इन लाइवस्टाक पाठ्यक्रम की अवधि दो वर्ष (चार सेमेस्टर) होगी। इसके साथ ही विद्यार्थियों को राज्य सरकार द्वारा संचालित बहुउद्देश्यीय पशु चिकित्सा या पशु चिकित्सा पालीक्लीनिक में तीन माह का प्रायोगिक प्रशिक्षण लेना अनिवार्य होगा।
पैरावेटेनरी प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना के लिए संस्था के पास स्वयं के नाम से या लीज पर न्यूनतम पांच एकड़ अतिक्रमण मुक्त पंजीकृत जमीन होना जरूरी है। संस्थान का प्रशासनिक व शैक्षणिक भवन और पशुचिकित्सालय न्यूनतम 1200 वर्ग मीटर में होना आवश्यक होगा। पंजीकरण शुल्क चार लाख रुपये (नान रिफंडेबल) और धरोहर राशि 20 लाख रुपये (रिफंडेबल) तय की गई है। संस्थाओं को पंजीकरण शुल्क की राशि आनलाइन आवेदन के साथ पशुधन विभाग द्वारा निर्धारित बैंक खाते में आनलाइन जमा करनी होगी। धरोहर राशि अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी होने के सात दिनों में जमा करनी होगी। अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी दो वर्ष तक मान्य होगा।
इस दौरान संस्था को पं. दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं गो अनुसंधान संस्थान मथुरा से संबद्धता प्राप्त करना आवश्यक होगा। हर संस्था को अनापत्ति प्रमाणपत्र प्राप्त होने के बाद वेबसाइट बनानी होगी और उसके यूआरएल (इंटरनेट एड्रेस) को सरकार को एक माह में उपलब्ध कराना होगा।
Paravets: यूपी के कृषि विवि व निजी कॉलेजों में तैयार किए जाएंगे पशु चिकित्सा सहायक, पशुपालन डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स चलाने की नीति मंजूर
प्रदेश में पशु चिकित्सकों की कमी दूर करने की कवायद,
05 नवम्बर 2024
लखनऊ। प्रदेश में पशु चिकित्सकों की कमी दूर करने के लिए अब कृषि विश्वविद्यालयों व निजी कॉलेजों में पशु चिकित्सा सहायक (पैरावेट्स) तैयार किए जाएंगे।
इसके लिए पशुपालन और परापशुचिकित्सा के क्षेत्र में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किया जाएगा। इसके लिए तैयार नीति को सोमवार को कैबिनेट ने हरी झंडी दे दी। इससे ग्रामीण इलाकों में पशु चिकित्सा सेवाओं को मजबूत करने और पशु चिकित्सा विज्ञान में प्रशिक्षित पैरावेट्स की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी। पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सकों की संख्या कम है। वर्तमान में मात्र 8193 पशु चिकित्सक ही हैं।
इसे देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में पैरावेट्स को पशु स्वास्थ्य सेवाओं के लिए तैयार किया जाएगा। उन्होंने बताया कि बेहतर पशु स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए पैरावेट्स के प्रशिक्षण और कौशल में वृद्धि की आवश्यकता को देखते हुए डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किया जाएगा।
इसके तहत पैरावेट्स को टीकाकरण, प्राथमिक चिकित्सा, घावों की देखभाल और पशु स्वास्थ्य सेवाओं के अन्य आवश्यक पहलुओं के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। अभी पशुपालन के क्षेत्र में कार्यरत पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विवि एवं गो अनुसंधान संस्थान मथुरा है। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि कुमारगंज और सरदार बल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि मेरठ भी पशु चिकित्सा महाविद्यालय चला रहे हैं। ये विवि निजी महाविद्यालयों को संबद्धता देने के मानक तय करेंगे।