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नई दिल्ली : केवल आरक्षण पाने के लिए मतांतरण संविधान से धोखाधड़ी -सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली : केवल आरक्षण पाने के लिए मतांतरण संविधान से धोखाधड़ी -सुप्रीम कोर्ट

ईसाई बन चुकी महिला के पुनः हिंदू धर्म अपनाने के दावे पर महत्वपूर्ण निर्णय

याची महिला ने नौकरी पाने के लिए की थी एससी प्रमाणपत्र दिए जाने की मांग

कोर्ट ने कहा, ऐसी धोखाधड़ी आरक्षण नीति के सामाजिक उद्देश्य को निष्फल करेगी


नई दिल्ली ।  सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सच्ची आस्था के बिना महज आरक्षण पाने के लिए मतांतरण को संविधान के साथ धोखाधड़ी माना जाएगा। साथ ही यह आरक्षण के मूल उद्देश्य के विरुद्ध होगा।

जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने सी. सेल्वारानी नामक महिला की ओर से दायर याचिका पर 26 नवंबर को यह फैसला सुनाया। साथ ही मद्रास हाई कोर्ट के 24 जनवरी के फैसले को बरकरार रखा जिसमें उसने सेल्वारानी को अनुसूचित जाति (एससी) का प्रमाणपत्र प्रदान करने से इन्कार कर दिया था। याचिकाकर्ता ने ईसाई धर्म अपना लिया था, लेकिन बाद में उसने नौकरी पाने के लिए हिंदू होने का दावा किया था।



पीठ की ओर से लिखे 21 पृष्ठ के फैसले में जस्टिस महादेवन ने जोर देकर कहा कि अनुच्छेद-25 के तहत प्रत्येक नागरिक को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने और मानने का अधिकार है। कोई भी व्यक्ति दूसरे धर्म को तभी अपनाता है जब वह उसके सिद्धांतों, मतों एवं आध्यात्मिक विचारों से प्रेरित होता है। उन्होंने कहा, 'लेकिन अगर मतांतरण का उद्देश्य दूसरे धर्म में वास्तविक आस्था न होकर आरक्षण प्राप्त करना है तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसे छिपे हुए उद्देश्यों वाले लोगों को आरक्षण का लाभ देने से आरक्षण नीति का सामाजिक उद्देश्य निष्फल हो जाएगा।' 


शीर्ष अदालत ने कहा कि पीठ के समक्ष पेश साक्ष्यों से स्पष्ट है कि अपीलकर्ता ईसाई धर्म को मानती है और नियमित रूप से चर्च जाकर सक्रिय रूप से उसमें आस्था व्यक्त करती है। इसके बावजूद वह हिंदू होने का दावा करती है और नौकरी पाने के लिए एससी प्रमाणपत्र की मांग कर रही है। पीठ ने कहा कि उसका यह दोहरा दावा अस्वीकार्य है और बपतिस्मा के बाद वह खुद की हिंदू पहचान जारी नहीं रख सकती। कोर्ट ने कहा कि बिना आस्था के केवल आरक्षण का लाभ पाने के लिए मतांतरण आरक्षण नीति के मौलिक सामाजिक उद्देश्यों को कमजोर करता है। याची महिला का काम आरक्षण नीतियों की भावना के विपरीत हैं जिनका उद्देश्य हाशिये पर पड़े समुदायों का उत्थान है।


दस्तावेजी सुबूतों से हुई ईसाई होने की पुष्टिः सेल्वारानी का जन्म हिंदू पिता और ईसाई मां के यहां हुआ है। जन्म के कुछ समय बाद ही उसका ईसाई के रूप में बपतिस्मा कर दिया गया था। बाद में उसने हिंदू होने का दावा किया और 2015 में पुडुचेरी में अपर डिवीजन क्लर्क पद के लिए आवेदन करने के लिए एससी प्रमाणपत्र की मांग की। लेकिन दस्तावेजी साक्ष्यों से महिला के ईसाई होने की पुष्टि हुई। उसके पिता वल्लुवन जाति (एससी) से ताल्लुक रखते हैं। वल्लुवन जाति को सुप्रीम कोर्ट के आदेश, 1964 के तहत एससी की मान्यता प्राप्त है। 


फैसले में कहा गया है कि अपीलकर्ता ने ईसाई धर्म का पालन जारी रखा, लिहाजा उसके हिंदू होने का दावा स्वीकार करने योग्य नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि जब अपीलकर्ता की मां ने शादी के बाद हिंदू धर्म अपना लिया था तो उसे अपने बच्चों का चर्च में बपतिस्मा नहीं कराना चाहिए था। इसलिए अपीलकर्ता का बयान अविश्वसनीय है। यह बात भी सत्यापित हुई है कि याची के माता-पिता का विवाह भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 के तहत पंजीकृत हुआ था। कोर्ट ने कहा कि तथ्यों के निष्कर्षों में कोई भी हस्तक्षेप अनुचित है, जब तक कि निष्कर्ष इतने विकृत न हों कि अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दें।


पुनः हिंदू धर्म अपनाने का नहीं है कोई साक्ष्य

पीठ ने कहा कि ईसाई धर्म अपनाने वाले लोग जातिगत पहचान खो देते है। एससी को मिलने वाले लाभ पाने के लिए उन्हें पुनः मतांतरण और मूल जाति में स्वीकार्यता के साक्ष्य उपलब्ध कराने होंगे। महिला ने दोबारा हिंदू धर्म अपनाने का दावा किया है, लेकिन दावे में सार्वजनिक घोषणा, समारोहों या विश्वसनीय दस्तावेज का अभाव है। पीठ ने कहा, 'कोई व्यक्ति किसी दूसरे धर्म को तभी अपनाता है जब वह वास्तव में उसके सिद्धांतों से प्रेरित होता है। केवल आरक्षण के लिए बिना आस्था के मतांतरण अस्वीकार्य है।' कहा, 'चूंकि पुनः मतांतरण के तथ्य पर विवाद है, इसलिए दावे से अधिक कुछ होना चाहिए। 


मतांतरण किसी समारोह या आर्य समाज के माध्यम से नहीं हुआ था। सार्वजनिक घोषणा नहीं की गई थी। रिकार्ड में ऐसा कुछ नहीं है जो दर्शाता हो कि उसने या उसके परिवार ने पुनः हिंदू धर्म अपना लिया है। इसके विपरीत एक तथ्यात्मक निष्कर्ष यह है कि याची अब भी ईसाई धर्म का पालन करती है। याची के विरुद्ध सुबूत हैं, इसलिए उसकी यह दलील कि मतांतरण के बाद जाति समाप्त हो जाएगी व पुनः मतांतरण के बाद जाति बहाल हो जाएगी, स्वीकार करने योग्य नहीं है।

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