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लखनऊ : शिक्षकों पर गैर-शैक्षणिक कार्यों का लगातार बढ़ता बोझ, डाटा फीडिंग के बोझ तले दबते जा रहे शिक्षक, अब अपार आईडी की फीडिंग में बर्बाद हो रहा पढ़ाई का समय

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लखनऊ : शिक्षकों पर गैर-शैक्षणिक कार्यों का लगातार बढ़ता बोझ, डाटा फीडिंग के बोझ तले दबते जा रहे शिक्षक, अब अपार आईडी की फीडिंग में बर्बाद हो रहा पढ़ाई का समय
 

लखनऊ । उत्तर प्रदेश के सरकारी और मान्यता प्राप्त स्कूलों के शिक्षक इन दिनों पढ़ाई छोड़कर अपार (ऑटोमेटेड परमानेंट अकादमिक अकाउंट रजिस्ट्री) आईडी बनाने में व्यस्त हैं। शिक्षकों को इस प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, जिसमें छात्रों के व्यक्तिगत और शैक्षणिक डेटा को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फीड करना शामिल है। इससे उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी, यानी बच्चों को पढ़ाना, बुरी तरह प्रभावित हो रही है।  


"हमें पढ़ाई के समय इस तरह के प्रशासनिक काम में उलझाया जा रहा है। शिक्षण कार्य पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, हम डेटा एंट्री ऑपरेटर बन गए हैं," एक शिक्षक ने नाराजगी जताई।  



गैर-शैक्षणिक कार्यों और योजनाओं से पढ़ाई हो रही बाधित  

यह पहली बार नहीं है जब शिक्षकों को पढ़ाई छोड़कर गैर-शैक्षणिक कार्यों में लगाया गया है। इससे न केवल बच्चों की शिक्षा बाधित हो रही है, बल्कि शिक्षकों में मानसिक तनाव भी बढ़ रहा है। शिक्षकों का कहना है कि सरकार की कई योजनाएं, जैसे मिड-डे मील की रिपोर्टिंग और अब अपार आईडी फीडिंग, सीधे कक्षाओं के समय को कम कर रही हैं।  

"अगर हमारा समय डेटा फीडिंग में ही लग जाएगा, तो बच्चों को पढ़ाएगा कौन? पढ़ाई के समय में इस तरह की गतिविधियां बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हैं," एक अन्य शिक्षक ने बताया।  


प्रशासनिक कार्यों के लिए अलग स्टाफ क्यों नहीं? 

शिक्षकों का सवाल है कि सरकार इस तरह के कार्यों के लिए अलग से स्टाफ क्यों नहीं नियुक्त करती। क्या शिक्षकों की भूमिका केवल पढ़ाना है, या हर योजना का कार्यान्वयन भी उनकी जिम्मेदारी है? शिक्षकों को जबरन इस तरह के कार्यों में शामिल करने से न केवल उनका समय बर्बाद हो रहा है, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता भी गिर रही है।  

"ऐसे कार्यों के लिए डाटा एंट्री ऑपरेटर और अन्य तकनीकी स्टाफ नियुक्त होना चाहिए। शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के लिए होते हैं, न कि प्रशासनिक कार्यों के लिए," शिक्षकों के संगठन ने अपनी नाराजगी जाहिर की।  


बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा सीधा असर

बच्चों की शिक्षा पर इसका सीधा असर पड़ रहा है। पढ़ाई का समय लगातार घट रहा है, जिससे बच्चों का शैक्षणिक स्तर प्रभावित हो रहा है। कई शिक्षक शिकायत करते हैं कि वे न तो पूरे समय पढ़ा पा रहे हैं, और न ही बच्चों की पढ़ाई में सुधार के लिए कोई नई योजना लागू कर पा रहे हैं।  

"हम बच्चों के साथ समय बिताने के बजाय कागजों और कंप्यूटर पर डेटा भरने में व्यस्त हैं। यह बच्चों के साथ अन्याय है," एक शिक्षक ने बताया।  


क्या हो सकता है समाधान? 

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षकों पर गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ कम करना जरूरी है।  

1. डेटा फीडिंग और अन्य प्रशासनिक कार्यों के लिए अलग से स्टाफ नियुक्त किया जाए।  
2. शिक्षकों को केवल शिक्षण और शैक्षणिक विकास के कार्यों तक सीमित रखा जाए।  
3. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शैक्षणिक गुणवत्ता में कोई कमी न हो।  


"बच्चों का भविष्य बनाने वाले शिक्षकों को उनके मूल कार्य से अलग करना न केवल शिक्षा व्यवस्था के लिए हानिकारक है, बल्कि यह पूरी शिक्षा नीति पर सवाल खड़ा करता है।"  

सरकार को इस दिशा में जल्द कदम उठाने की जरूरत है, ताकि शिक्षकों की ऊर्जा बच्चों की पढ़ाई में लगे और शिक्षा का स्तर बेहतर हो सके।

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